नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबराय ने चंद दिनों पहले कृषि आय पर कर लगाने की जो वकालत की थी उसे वित्त मंत्री ने सिरे से खारिज अवश्य कर दिया था, लेकिन ऐसा लगता है कि यह सवाल आसानी से ओझल नहीं होने वाला कि आखिर अमीर किसानों को कर के दायरे में क्यों नहीं लाया जा सकता? गत दिवस मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने न केवल यह सवाल उछाला कि अमीर और गरीब किसानों में अंतर करने में क्या परेशानी है, बल्कि यह भी पूछा कि राज्य सरकारें धनी किसानों को कर के दायरे में लाने के लिए कुछ क्यों नहीं कर सकतीं? इसमें कोई हर्ज नहीं कि उनके इन सवालों के बाद इस पर बहस आगे बढ़े कि क्या अमीर किसानों को कर के दायरे में लाया जाना चाहिए? अमीर किसानों से कर वसूली राजनीतिक दृष्टि से एक संवेदनशील मसला भले हो, लेकिन समझदारी इसी में है कि इस मुद्दे पर व्यापक बहस हो।

केवल इस आधार पर इस बहस से कतराने का कोई मतलब नहीं कि केंद्र सरकार को कृषि आय पर कर लगाने का अधिकार नहीं। चूंकि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार केंद्र सरकार के पास कृषि आय पर कर लगाने का अधिकार नहीं है इसलिए वह इस मामले में कुछ नहीं कर सकती, लेकिन राज्य सरकारें चाहें तो इस दिशा में सोच-विचार कर सकती हैं। समय की मांग है कि इस पर सोच-विचार हो। यह सही है कि देश में औसत किसानों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं, लेकिन यह भी नहीं कहा जा सकता कि देश में अमीर किसान हैं ही नहीं। कम से कम इसकी पड़ताल तो की ही जानी चाहिए कि खेती से अच्छी-खासी कमाई करने वाले किसान कितने हैं और क्या वे इस स्थिति में हैं उनसे किसी तरह थोड़ा ही सही, टैक्स वसूला जा सके।

दुर्भाग्य से इस पड़ताल में यदि कोई मुश्किल है तो वह है राजनीतिक दलों का रवैया। जिस तरह वे आरक्षण के मसले पर नीर-क्षीर ढंग से विचार करने के लिए तैयार नहीं उसी तरह वे यह सुनते ही बिदक जाते हैं कि क्या किसानों को टैक्स के दायरे में लाया जा सकता है? जब भी कोई यह सवाल उठाता है तो वह आम किसानों का उल्लेख नहीं कर रहा होता, फिर भी उसकी बात नहीं सुनी जाती। इसका कारण यही है कि किसान हित की बातें करने वाले वे तमाम नेता हैं जो खेती से अच्छी-खासी आय अर्जित करते हैं। बार-बार यह सामने आ रहा है कि एक बड़ी संख्या में कारोबारी ऐसे हैं जो खेती के बहाने टैक्स चोरी करते हैं। कुछ तो ऐसे भी हैं जो अपने कालेधन को कृषि आय के रूप में दिखाते हैं। इसी तरह कुछ ऐसे भी किसान हैं जो बड़ी जोत के मालिक हैं।

आखिर जब खुद केंद्र सरकार यह मान रही है कि तमाम लोग टैक्स से बचने के लिए अपनी आय कृषि आधारित दिखा रहे हैं तब फिर उसे राज्यों के सहयोग से ऐसे कदम उठाने पर विचार क्यों नहीं करना चाहिए जिससे खेती पर कर न लगाने के प्रावधान का दुरुपयोग रुके? अभी तो यह स्थिति है कि कई अमीर व्यवसायी कृषि योग्य जमीन खरीद कर कागजों पर किसान बने जा रहे हैं।

[राष्ट्रीय संपादकीय]