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तवी नदी में नाले ही नहीं गिर रहे, इसके किनारों पर शहर का कचरा भी ठिकाने लगाया जा रहा। नदी के संरक्षण के लिए कारगर कदम नहीं उठाए तो परिणाम गंभीर होंगे
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जीवनदायिनी तवी नदी को स्वच्छ बनाने के लिए महत्वाकांक्षी सीवरेज परियोजना के आठ साल से अधर में लटके रहना चिंतनीय है। स्थिति की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तवी नदी में शहर के 16 बड़े नाले गिरते हैं। इतना ही नहीं, शहर से रोजाना निकलने वाला चार सौ मीट्रिक टन कचरा भी तवी के किनारों पर ठिकाने लगाया जा रहा है। नतीजतन इसके आस-पास वाले क्षेत्रों में प्रदूषण तो बढ़ ही रहा है, जमीन की उर्वरक क्षमता भी कम होती जा रही है। विडंबना है कि जम्मू शहर में सीवरेज लाइन तो बिछा दी गई है, लेकिन तवी में गिरने वाले नालों को सीवरेज से नहीं जोड़ा गया है। हद तो यह है कि इसके लिए अभी कोई परियोजना ही नहीं है। प्रदूषित होती तवी अब गंदे नाले का रूप लेती जा रही है। अगर अभी से इसके संरक्षण के लिए कारगर कदम नहीं उठाए गए तो परिणाम गंभीर होंगे। सरकार यह भूल गई है कि तवी नदी से रोजाना 1.44 मिलियन गैलन पानी को ट्रीट कर उसे पेयजल के रूप में सप्लाई किया जाता है। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए तवी नदी पर कृत्रिम झील बनाई बनाई जा रही है, लेकिन जब तवी प्रदूषण मुक्त होगी तभी झील बनाने का मकसद सफल हो सकता है। तवी नदी के दोनों ओर पाथ-वे बनाने की योजना भी तभी फलीभूत हो सकती है, जब इसकी स्वच्छता की तरफ ध्यान दिया जाए। बेशक अमरूट योजना के तहत शहर के नालों को सीवरेज से जोडऩे के तमाम दावे किए जा रहे हैं, लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ नहीं। सीवरेज का काम बेशक चरणबद्ध तरीके से चल रहा है, लेकिन आठ साल बाद भी इसका काम पूरा न हो पाए तो सरकारी व्यवस्था पर भी अंगुली उठती है। शहर में बिछाई गई सीवरेज लाइन को कुछ मुहल्लों आदि से जोड़ा तो गया है, लेकिन जब तक छोटी सीवरेज लाइन को बड़ी लाइन से नहीं जोड़ा जाता तब तक इसका फायदा नहीं होगा। सरकार का दायित्व बनता है कि राज्य में पॉलीथिन पर सख्ती से रोक लगाए। यह पॉलीथिन घरों से निकल कर नदी नालों में गिर रहा है, जिससे स्थिति और विकराल हो जाती है। अमरूट योजना के तहत शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए सभी कदम उठाए जाएं। यह तभी संभव होगा जब नेता दलगत राजनीति से उपर उठकर काम करें।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]