कई वर्षों तक देश के पिछड़े राज्यों में शुमार रहे झारखंड ने आर्थिक विकास के मोर्चे पर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यह इस कथित 'पिछड़े' प्रदेश के हर नागरिकों के लिए गौरव की बात है। खासकर उन लोगों के लिए जिन्होंने इस उपलब्धि तक पहुंचने के लिए लगातार अथक परिश्रम किया है। यह उपलब्धि सिर्फ सरकार की नहीं बल्कि हर उस इंसान की है जो कहीं न कहीं अर्थव्यवस्था का हिस्सा है। उद्योगपतियों, व्यापारियों, नौकरीपेशा लोग, किसान और यहां तक कि घरेलू महिलाओं का भी योगदान इस उपलब्धि में रहा है। आखिर झारखंड ने विकास के मोर्चे पर देश के कई राज्यों को पीछे जो छोड़ दिया है।
विधानसभा में पेश आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2016-17 में स्थिर मूल्यों पर झारखंड की विकास दर 8.5 फीसद आंकी गई है। यह राष्ट्रीय औसत 6.8 फीसद से सवा गुना अधिक है। देश भर में झारखंड से बेहतर प्रदर्शन सिर्फ गुजरात, मिजोरम और त्रिपुरा का रहा है। रिपोर्ट के अनुसार कृषि, उद्योग और सर्विस सेक्टर में वृद्धि दर्ज हुई है। गौरव की बात यह भी कि पिछले तीन वर्षों में राज्य की विकास दर दो अंकों में रही। इस वर्ष भी अनुमान लगाया जा रहा है कि झारखंड में विकास की यह रफ्तार जारी रहेगी। सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार राजस्व के मानक पर भी झारखंड का प्रदर्शन अव्वल रहा है। पिछले वित्तीय वर्ष 2015-16 में राज्य की कुल राजस्व प्राप्तियों में 35.95 फीसद का इजाफा हुआ। अनुमान के अनुसार इस वित्तीय वर्ष में भी प्राप्तियों में 16.65 फीसद की वृद्धि होगी जो कि अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत है। रिपोर्ट यह भी बता रही है कि वर्ष 2016-17 में राजकोषीय घाटा घरेलू उत्पाद के 2.16 फीसद पर रह सकता है। साक्षरता के क्षेत्र में भी बेहतर प्रदर्शन कर राज्य ने अच्छे दिनों के संकेत भी देने शुरू कर दिए हैं। खासकर महिला साक्षरता के क्षेत्र में। साक्षरता दर के सुधार में महिलाएं काफी आगे दिख रही हैं। महिला साक्षरता में रांची की स्थिति सबसे बेहतर है। इन तमाम उत्साहवद्र्धक आंकड़ों के बावजूद एक बात चुभती है और वह यह कि प्रति व्यक्ति आय के मामले में झारखंड पीछे है। देश के पांच राज्यों से बेहतर होने के बावजूद राष्ट्रीय औसत से पीछे होना चिंता का विषय है। वर्तमान रफ्तार से इसकी भरपाई में भी दो दशक तक का समय लग सकता है। सरकार को इसके लिए सतत प्रयास करना होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]