पंजाब में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला बदस्तूर जारी है। पंजाब में शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरता है जब कोई न कोई किसान मौत को गले न लगाता हो। किसान आत्महत्या के मामले में राज्य के मालवा क्षेत्र के मानसा, बठिंडा, संगरूर और अबोहर जिले तो कुख्यात होते जा रहे हैं। यह पूरी बेल्ट कॉटन के लिए पहचानी जाती है। इस बेल्ट में वर्ष 2015 के दौरान नकली पेस्टीसाइड और सफेद मक्खी ने ऐसा कहर ढहाया कि अभी तक किसान इससे उबर नहीं पाए हैं। वर्ष 2015 से ही एकाएक किसानों की आत्महत्या की ग्र्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। पिछले साल इन तीनों जिलों में करीब ढाई सौ किसानों ने आत्महत्या की। भारतीय किसान यूनियन का भी मानना है कि मालवा क्षेत्र में औसतन एक किसान प्रतिदिन मरता है। हालांकि सरकार ने इस बेल्ट के किसानों को आर्थिक मदद के रूप में मुआवजा भी दिया था परंतु वह भी ऊंट के मुंह में जीरे के समान साबित हुआ। कुछ किसान ऐसे भी हैं जो कर्ज में अकंठ डूबे हुए थे और उन्हें सरकारी एजेंसियों से फसल का समय पर भुगतान नहीं हुआ। बैंक वाले भरपाई के लिए परेशान कर रहे थे जिस वजह से किसानों ने आत्महत्या कर ली। चिंतनीय है कि पंजाब की किसानी कर्ज के बोझ तले इस कद्र दब चुकी है कि अब यह बर्बादी की राह पर अग्र्रसर है। पिछले कल फरीदकोट में एक किसान ने कर्ज से दुखी होकर नहर में कूद कर जान दे दी। वहीं मानसा व संगरूर में दो किसानों ने कर्ज से बाहर निकलने का कोई रास्ता नजर न आने पर मौत का रास्ता अपना लिया। पिछले कल किसानों की आत्महत्या पर ही देश की शीर्ष कोर्ट ने भी चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि यह एक गंभीर मामला है। मात्र पीडि़त परिवार को मुआवजा देकर इससे इतिश्री कर लेना इस समस्या का हल नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इसका कोई ठोस हल निकालने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर अपनी टिप्पणी में कहा कि सरकार इस समस्या का हल निकालने की बजाय गलत दिशा में भटक रही है। यदि सही दिशा में प्रयास होंगे तो इस समस्या का हल निकाला जा सकता है। सरकार को आत्महत्या जैसी परिस्थितियों को बदलने के लिए प्रयत्न करने होंगे। अभी हाल ही में पंजाब सरकार ने भी गुरुनानक देव विश्वविद्यालय, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय व पंजाबी विश्वविद्यालय के माध्यम से किसान आत्महत्याओं पर सर्वे करवाया है। परंतु चुनाव के मद्देनजर इसे जारी नहीं किया गया है। केंद्र व राज्य की सरकारों को प्रयास करने होंगे कि वह इस बात को सुनिश्चित बनाएं कि किसानों को उनकी फसल का पूरा दाम सही समय पर मिले। फसलों के खराब होने की स्थिति में भी किसानों को किस तरह से मदद पहुंचाई जाए इसके लिए भी ठोस नीति बनाने की आवश्यकता है।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]