तेजाबी होती मानसिकता
मुख्यमंत्री की फटकार के बाद पुलिस मशीनरी सक्रिय हो गई है लेकिन, कई सवाल अब भी अनुत्तरित हैं।
-----मुख्यमंत्री की फटकार के बाद पुलिस मशीनरी सक्रिय हो गई है लेकिन, कई सवाल अब भी अनुत्तरित हैं।-----सामूहिक दुष्कर्म पीडि़त को तेजाब पिलाने की घटना के बाद उसे गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उसका हालचाल लेने मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी भी अस्पताल पहुंचे थे। उन्होंने दंपती को न केवल आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया, बल्कि आर्थिक सहायता की भी घोषणा की। चिकित्सकों को बेहतर इलाज का निर्देश भी दिया। फिलहाल मुख्यमंत्री की फटकार के बाद पुलिस मशीनरी सक्रिय हो गई है लेकिन, कई सवाल अब भी अनुत्तरित हैं। न केवल इनका उत्तर ढूंढ़ा जाना है, बल्कि समस्या का कारगर हल भी जरूरी है।एसिड अटैक क्रूरतम अपराधों में से एक है। इसे लेकर कठोर कानून भी बनाया गया है, जिसके तहत दोषी को उम्रकैद से लेकर फांसी तक हो सकती है, बावजूद इसके ऐसी घटनाएं नहीं रुक रही हैं तो इसकी कुछ वजह हो सकती है। पहली बात एसिड बाजार में इतना सहज उपलब्ध क्यों है। इसकी जरूरत किसे है जो गली-मुहल्ले तक की दुकानों पर यह खुलेआम इफरात में उपलब्ध है। यदि एसिड की इतनी व्यापक पैमाने पर खपत है तो लाइसेंसशुदा दुकानों के जरिये स्पष्ट पहचान उपलब्ध कराने वालों को ही इसकी बिक्री सुनिश्चित क्यों नहीं की जा रही है। दूसरा, एसिड अटैक पीडि़तों के प्रति पुलिस, समाज और सरकारी मशीनरी संवेदनशील क्यों नहीं हो पा रही है? देखा यही गया है कि ऐसे मामले में दोषियों को सजा दिलाने के बजाय तमाम स्तरों से उन्हें बचाने का काम शुरू हो जाता है। पीडि़त को उस हद तक समर्थन नहीं मिल पाता है कि वह गुनहगारों से कानूनी लड़ाई लड़ सके। तर्क हो सकते हैं कि बिजली की अपर्याप्त आपूर्ति के कारण इनवर्टर के उपयोग का प्रचलन बढ़ा है, जिसके कारण एसिड की मांग भी बढ़ी है। दूसरे, इसका उपयोग टॉयलेट आदि साफ करने के लिए भी होता है। एसिड के उपयोग के ऐसे और भी कारण हो सकते हैं। ऐसे में जरूरी है कि इसकी बिक्री पर लगातार निगहबानी हो। जगजाहिर है की एसिड अटैक की ज्यादा शिकार महिला समाज ही हो रहा। इसे देखते हुए पीडि़ताओं को राहत देने के लिए कानून में बदलाव के बाद ऐसे मामलों की सुनवाई की समयसीमा 60 दिन तय की गई है। साथ ही पीडि़तों का इलाज मुफ्त करने का भी प्रावधान किया गया है। हमले के शिकार लोगों को न केवल फिजिकली चैलेंज्ड माना जाएगा, बल्कि उन्हें आरक्षण, प्रशिक्षण, ऋण सुविधा आदि भी प्रदान की जाएगी, लेकिन यह तभी संभव है जब सारी सरकारी मशीनरी उनके प्रति पूरी संवेदनशीलता से काम करेगी।
[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]