पिछले एक साल से वेतन न मिलने के विरोध में फीमेल मल्टीपर्पज वर्कर्स के समर्थन में स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों का हड़ताल पर जाना स्वभाविक है। ये वर्कर्स छब्बीस दिन से धरने पर बैठी हुई हैं। इनके समर्थन में करीब दस हजार स्वास्थ्य कर्मचारियों के भी उतर आने से जम्मू संभाग के तमाम अस्पतालों में पिछले दो दिन से ओपीडी सेवाएं प्रभावित होकर रह गई हैं। इतना ही नहीं जिन मरीजों को ऑपरेशन की तारीख भी मिली थी, उन्हें भी स्थगित कर दिया गया है। अगर हड़ताल और ज्यादा लंबी खिंचती है, तो स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह से चरमरा कर रह जाएंगी।

हद तो यह है कि मल्टीपर्पज वर्कर्स की समस्याओं के समाधान के लिए कोई मंत्री आगे नहीं आया। फीमेल मल्टीपर्पज वर्कर्स की जो हालत है, वह किसी से नहीं छिपी है। एक वर्ष से भी अधिक समय से उन्हें वेतन नहीं मिला है। उनके साथ ऐसा पहली बार नहीं है। वर्षो से परिवार कल्याण विभाग के अधीन काम कर रही पांच सौ से अधिक वर्कर्स को कभी भी समय पर वेतन नहीं मिला। यह सही है कि बीते वर्षो में कुछ अधिकारियों ने वेतन की समस्या के समाधान के लिए प्रयास तो किए, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। मंहगाई के इस दौर में जब किसी के लिए भी एक महीने से अधिक वेतन के बिना गुजारा करना मुश्किल है। ऐसे में इन वर्कर्स की हालत को भलीभांति समझा जा सकता है।

होना तो यह चाहिए था कि सरकार उनकी समस्या का समाधान करती, लेकिन लगातार हुई उपेक्षा के कारण वर्कर्स को सड़कों पर उतरने के लिए विवश होना पड़ रहा है। फलस्वरूप स्वास्थ्य कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। यह अच्छी बात है कि हड़ताली कर्मचारियों ने आपातकालीन सेवाओं को हड़ताल से दूर रखा है, लेकिन ओपीडी सेवाएं प्रभावित हो रही हैं। किसी भी अस्पताल में पैरामेडिकल स्टाफ रीढ़ की हड्डी होता है और अगर उनकी समस्याओं को नजरअंदाज किया गया तो इसका असर लाखों लोगों की सेहत पर पड़ सकता है।

(स्थानीय संपादकीय जम्मू-कश्मीर)