-----राज्य सरकार को यह संदेश तो देना ही होगा कि कि अभी तो सवा महीने ही बीते हैं, आगे का सफर लंबा है। -----योगी सरकार ने स्वच्छ शासन देने की नीयत से न केवल पार्टी के नेताओं को अपनी चल-अचल संपत्ति का विवरण देने के लिए कहा था, बल्कि आइएएस अफसरों से भी यही कहा गया था। अफसरों को पहले 15 दिन का मौका दिया गया। उन्होंने विवरण नहीं दिया तो फिर अवधि बढ़ाई गई। मंगलवार को वह अवधि भी समाप्त हो गई लेकिन, 120 अफसरों ने अपनी चल और 30 ने अचल संपत्ति का ब्योरा नहीं दिया। यह तब है जबकि अफसर अचल संपत्ति का ब्योरा हर साल जमा करते हैं। हां, इस बार चल संपत्ति की भी जानकारी मांग ली गई है। सच तो यह है कि योगी सरकार तो काम में जुट गई है लेकिन, लगता है प्रशासनिक मशीनरी का एक हिस्सा अब भी वही पुराना जंग खाया हुआ ही है। हालांकि इस मशीनरी के उन्नयन का प्रयास भी लगातार चल रहा है लेकिन, वर्षों से उस पर लापरवाही, अकर्मण्यता, नाफरमानी, गैर जिम्मेदारी का जो गर्द गुबार जमा है, वह कम होने का नाम नहीं ले रहा। इस तंत्र को परवाह नहीं है कि समय बदल चुका है और सबकी जरूरतें और अपेक्षाएं भी बदल चुकी हैं लेकिन, कुछ अधिकारियों के माथे पर शिकन तक नहीं है। उनकी चाल-ढाल पूर्ववर्ती सरकारों के कार्यकाल की ही बनी हुई है। हो सकता है कि कुछ लोग किसी निजी समस्या के कारण अभी तक ब्यौरा न उपलब्ध करा पाए हों लेकिन, सभी के साथ यही कारण हो, यह संभव नहीं है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सुशासन देने का दावा कर रहे हैं परंतु अच्छे प्रशासन का सारा दारोमदार इस सरकारी मशीनरी पर ही है। ऐसी हालत में निश्चित रूप से ऐसे अधिकारी सुशासन की राह की कमजोर कड़ी हैं, जिनसे सरकार को जल्द से जल्द छुटकारा पाना होगा। या तो ऐसे लोगों को उचित सजा देनी होगी या फिर इन्हें जिम्मेदारी के पद से हटाना होगा। सरकार को यह संदेश तो देना ही होगा कि अभी तो सवा महीने ही बीते हैं, आगे का सफर लंबा है। जो उसके दौड़ सकता है वही साथ चलेगा, अन्यथा उसे दरकिनार करना ही सरकार और प्रदेश की जनता के हित में होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]