मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जिला पदाधिकारियों और पुलिस कप्तानों को शराबबंदी के मोर्चे पर पूर्ण सख्ती बरतने का जो निर्देश दिया है, वह वक्त की मांग थी। दरअसल, पिछले कुछ दिनों से विभिन्न स्तरों पर यह धारणा बनने लगी थी कि शराबबंदी के मामले में प्रशासन नरम पड़ गया है। मुख्यमंत्री के स्पष्ट निर्देश के बाद यह भ्रम पूरी तरह दूर हो जाना चाहिए। यह सचमुच अफसोसजनक है कि पूर्णबंदी के एक साल बाद भी तमाम लोग शराब का मोह नहीं छोड़ पाए हैं और मौका मिलते ही लुक-छिपकर शराब पीते हैं। शराब के लती व्यक्तियों की यह बुरी आदत छुड़ाने के लिए राज्य सरकार ने काउंसिलिंग और चिकित्सा की भी व्यवस्था की। इसका लाभ उठाकर तमाम लोग इस लत से मुक्त हो गए यद्यपि कुछ लोग अब तक इससे नहीं उबर पा रहे। यह चिंता की बात है। यह विचारणीय विषय है कि ऐसे लोगों के मन-मस्तिष्क से शराब के प्रति लगाव कैसे मिटाया जाए। इसमें दो राय नहीं कि राज्य के लाखों लोग शराब के जाल से बाहर निकलकर खुशहाल जिंदगी जी रहे है लेकिन जब तक पूरी तरह शराब का सफाया नहीं हो जाता, इस कानून की मंशा अधूरी रहेगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी कह चुके हैं कि सिर्फ कठोर कानून के बूते सच्चे अर्थ में शराबबंदी का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता। यह तभी संभव है जब राज्य के लोग सरकार के इस फैसले के पीछे छिपी लोक हितकारी मंशा और शराब के कारण परिवार, समाज तथा राज्य को होने वाले नुकसान को ठीक से समझें। कानून की अपनी भूमिका है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता लेकिन वैकल्पिक माध्यमों पर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रतिबंध का उल्लंघन करके शराब पीने के आरोप में अब मुख्य रूप से अभिजात्य वर्ग के लोग पकड़े जा रहे हैं। इनमें पुलिस अधिकारी और डॉक्टर भी शामिल हैं जिन पर परोक्ष-अपरोक्ष रूप से दूसरों की शराब की लत छुड़वाने की जिम्मेदारी है। उम्मीद है कि मुख्यमंत्री के निर्देश पर सख्ती के नए दौर में ऐसी बाधाएं दूर होंगी। यह भी देखा जाना चाहिए कि शराब की लत छुड़वाने के लिए राज्य सरकार ने काउंसिलिंग और उपचार की जो व्यवस्था की थी, वह प्रभावी ढंग से काम कर रही है या नहीं? यह भी सच है कि शराबबंदी का लक्ष्य एक दिन में हासिल नहीं किया जा सकता। इसी वजह से बिहार की शराबबंदी से प्रेरित कई राज्य इसे चरणबद्ध ढंग से लागू कर रहे हैं। बहरहाल, बिहार इस दिशा में काफी आगे बढ़ चुका है। अब पीछे मुडऩे का सवाल ही नहीं।
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बिहार का शराबबंदी अभियान सही दिशा में बढ़ रहा है। इतने बड़े फैसले के क्रियान्वयन में कुछ रुकावटें आना अचंभा नहीं। मुख्य बात यह है कि यह मुद्दा राज्य सरकार की प्राथमिकता में शामिल बना रहे। कामयाबी तो मिलेगी ही।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]