पूरे देश की तरह हिमाचल प्रदेश में भी बाल श्रम की समस्या गहराती जा रहा है। प्रतिबंध के बावजूद बच्चों से मजदूरी करवाई जा रही है और जबरन काम करवाया जा रहा है।
बच्चे भगवान का रूप माने जाते हैं, लेकिन पढ़ने-लिखने और खेलने की उम्र में उनसे बड़ों की तरह काम लिया जाना किसी भी नजरिए से सही नहीं है। न मानवीय दृष्टिकोण से और न ही नैतिक तौर पर बाल मजदूरी को सही ठहराया जा सकता है। पूरे देश की तरह हिमाचल प्रदेश में भी यह समस्या गहराती जा रहा है। 14 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी करवाने पर प्रतिबंध के बावजूद उनसे जबरन काम करवाया जा रहा है। घरों, होटलों, ढाबों व दुकानों पर ऐसे बच्चे आमतौर पर मिल जाते हैं। हैरत की बात यह है कि इनसे काम तो पूरा लिया जाता है, लेकिन वेतन के नाम पर कुछ सौ रुपये देकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है। बाल श्रम अपराध होने के बावजूद प्रदेश में ऐसे मामलों की कोई कमी नहीं दिख रही। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने भी हाल ही में आदेश जारी कर बाल मजदूरी रोकने के लिए उठाए जा रहे कदमों पर सरकार से जवाब मांगा था। यह ऐसी समस्या है, जिसे यदि समय रहते नियंत्रण में नहीं लाया गया तो इसके दूरगामी परिणाम अत्यंत भयावह हो सकते हैं। सरकार बाल श्रम रोकने के लिए कानून तो बना चुकी है, लेकिन जब तक समस्या की जड़ तक नहीं पहुंचा जाता, इस समस्या का समाधान मुश्किल है। बाल श्रम की समस्या का मूल कारण गरीबी व अशिक्षा हैं। जब तक देश के नागरिक शिक्षित नहीं होंगे, तब तक इस प्रकार की समस्याओं का सामना करना ही पड़ेगा। कुछ ऐसी योजनाएं बनाकर लागू की जाएं, जिनसे लोगों का आर्थिक पक्ष मजबूत हो सके और उन्हें बच्चों को मजदूरी के लिए मजबूर न होना पड़े। प्रशासनिक स्तर पर कानून का पालन कड़ाई से किए जाने की जरूरत है। व्यक्तिगत स्तर पर भी बाल श्रम की समस्या का निदान सभी लोगों का दायित्व है। इसके प्रति हमें जागरूक होना चाहिए तथा इसके विरोध में सदैव आगे आना चाहिए। ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए जो बच्चों से मजदूरों की तरह काम करवाते हैं। कानून से खिलवाड़ करने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। हिमाचल प्रदेश ने पूरे देश में अच्छी छवि बनाई है, जिसे ऐसे काम करने वालों के कारण धूमिल नहीं होने दिया जाना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]