दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने प्रदूषण नहीं फैलाने वाले 217 उद्योगों को पर्यावरण की एनओसी की बाध्यता से मुक्त कर दिया है। निस्संदेह यह एक सराहनीय और स्वागतयोग्य कदम है। इससे उद्यमियों का शोषण और उनकी परेशानी दोनों ही दूर होंगी। इस तरह के उद्योगों के लिए श्वेत श्रेणी बनाकर भी बढिय़ा निर्णय लिया गया है। इससे अब गेहूं के साथ घुन नहीं पिसेगा। लेकिन इस सबके साथ-साथ बोर्ड को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि प्रदूषण फैलाने वाले लाल और नारंगी श्रेणी के उद्योगों के प्रति बिल्कुल भी नरमी न बरती जाए। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इसकी भी निगरानी करनी होगी कि दिल्ली की आबोहवा को किसी भी स्तर पर कोई नुकसान नहीं पहुंचे। हर मानक का शत- प्रतिशत पालन होना चाहिए।
सच तो यह है कि दिल्ली में प्रदूषण की समस्या गहराती जा रही है। और इसकी वजह यह है कि हमेशा ही हर स्तर पर लापरवाही बरती गई है। कभी सोचा ही नहीं गया कि एक दिन यह प्रदूषण जानलेवा भी बन सकता है। अब जबकि पानी सिर से ऊपर जा चुका है तो हाय तौबा वाली स्थिति बनी हुई है। एक ओर सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को बेहतर बनाने की बात की जा रही है तो दूसरी ओर औद्योगिक क्षेत्रों और इकाइयों पर निगरानी करने की। थर्मल पावर प्लांट बंद करने की योजना बन रही है तो ई वाहनों को बढ़ावा देने की भी बात हो रही है। यहां यह भी समझना होगा कि होगा कि प्रदूषण की रोकथाम के लिए जब तक ईमानदार प्रयास और सामूहिक भागीदारी नहीं होगी, तमाम उपाय कागजी ही साबित होते रहेंगे। हर विभाग को अपने हिस्से की ईमानदारी बरतनी होगी। चाहे कर्मचारी हो या अधिकारी, आम हो या खास.. सभी को सामूहिक स्तर पर इसके लिए अपना योगदान देना होगा। घर के बाहर भी झाडू लगाई जाए तो पहले पानी का छिड़काव किया जाए ताकि धूल न उड़े। खुले में कूड़ा नहीं जलाया जाए। निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग किया जाए। औद्योगिक इकाइयों का दूषित पानी नाले- नालियों में नहीं जाने पाए। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी चाहिए कि जहां एक ओर सकारात्मक प्रयास करने वालों के साथ प्रोत्साहित करने वाला रवैया अपनाए, वहीं नियमों का उल्लंघन करने वालों के साथ पूरी सख्ती से पेश आए।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]