सख्ती दिखाने का समय
भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को लेकर संसद में विदेश मंत्री और गृहमंत्री की ओर से पाकिस्तान को सख्त शब्दों में चेताया।
पाकिस्तानी सैन्य अदालत द्वारा सामान्य नियम-कानूनों और अंतरराष्ट्रीय परंपराओं को धता बताते हुए भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को जासूसी के आरोप में मौत की सजा सुनाने के खिलाफ देश भर में तीखी प्रतिक्रिया होनी ही थी। संसद में सभी राजनीतिक दलों की एकजुटता भी वक्त की मांग थी। यह अच्छा हुआ कि विदेश मंत्री और गृहमंत्री की ओर से पाकिस्तान को न केवल सख्त शब्दों में चेताया गया, बल्कि कुलभूषण जाधव को बचाने के लिए सभी विकल्प इस्तेमाल करने का भी भरोसा दिलाया गया। इस सिलसिले में परिपाटी से हटकर कदम उठाने के भी संकेत दिए गए और संयुक्त राष्ट्र के समक्ष पाकिस्तान की पोल खोलने के भी। नि:संदेह यह सब घटनाक्रम आम जनता और साथ ही कुलभूषण जाधव के परिवार को ढांढस बंधाने वाला है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पाकिस्तान झूठ का सहारा लेने के साथ ही ढिठाई पर भी आमादा दिख रहा है। वह मनमाने तरीके से काम करने वाली अपनी सैन्य अदालत की कारस्तानी का बचाव करने के साथ ही यह भी प्रदर्शित कर रहा है जैसे कुलभूषण जाधव को फांसी की सजा उसकी ओर से आतंकवाद के खिलाफ उठाया गया कदम है। पाकिस्तान के फरेब को बेनकाब करने की कोशिश में यह ध्यान रखा जाना आवश्यक है कि यह एक ऐसा देश है जो नित नए बहाने बनाने और उनके जरिये दुनिया की आंखों में धूल झोंकने में माहिर है। स्पष्ट है कि भारत को अपनी उंगली टेढ़ी करने के लिए तैयार रहना चाहिए और इस क्रम में शठे शाठ्यम समाचरेत की उक्ति पर अमल करने में भी संकोच नहीं करना चाहिए। कभी-कभी दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना आवश्यक हो जाता है।
इसमें संदेह है कि पाकिस्तान की चौतरफा निंदा-भत्र्सना, संसद के भीतर-बाहर राजनीतिक एकजुटता अथवा उसके खिलाफ कोई प्रस्ताव पारित करने से उसकी सेहत पर कोई असर पड़ेगा। हैरत नहीं कि वह इन सब गतिविधियों के जवाब में अपने यहां भारत विरोधी उन्माद पैदा करने की कोशिश करे। वैसे भी यह उसके लिए बहुत आसान काम है। पाकिस्तान के प्रति अपनी नाराजगी से दुनिया को जोर-शोर से परिचित कराने में हर्ज नहीं, लेकिन इसके साथ ही कुछ ऐसे कदम उठाने भी आवश्यक हैं जिससे वह कुलभूषण जाधव के मामले में अपने फैसले पर नए सिरे से विचार करने के लिए विवश हो। ऐसे कदम उठाते समय इसकी परवाह नहीं की जानी चाहिए कि पाकिस्तान से द्विपक्षीय रिश्ते कितने बिगड़ जाएंगे, क्योंकि वे तो पहले से ही बिगड़े हुए हैं। यह समझने की जरूरत है कि अगर पाकिस्तान को कूटनीतिक रिश्तों की तनिक भी चिंता होती तो वह फर्जी अदालती प्रक्रिया का सहारा लेकर कुलभूषण जाधव को फांसी की सजा नहीं सुनाता। यह ठीक नहीं कि हमारे नीति-नियंता खराब से खराब हालात में भी पाकिस्तान से संबंध सुधार की ललक दिखाते रहते हैं। दरअसल इसी रवैये के चलते पाकिस्तान के हाथोें बार-बार धोखा खाना पड़ता है। पिछले तीन-चार दशकों में पाकिस्तान ने रह-रह कर पीठ में छुरा घोंपने का काम किया है, लेकिन एक अदद सर्जिकल स्ट्राइक के अलावा उसे सबक सिखाने का और कोई उल्लेखनीय उदाहरण नहीं दिखता। पाकिस्तान को सबक सिखाने के मामले में यह भी याद रखा जाना चाहिए कि सब कुछ अपने बलबूते ही करना होगा।
[ मुख्य संपादकीय ]