राज्य सरकार को वर्षा जल संरक्षण पर काम करना होगा। नदियों का पानी रोकने को छोटे-छोटे चैक डैम व बाढ़ का पानी रोकने के लिए रबर डैम बनाने होंगे। ---उत्तर प्रदेश में तीन दशकों से भूगर्भ जल के स्तर में तेजी से गिरावट आ रही है। विशेषज्ञ इस स्थिति से भलीभांति परिचित हैं, सरकारों ने कदम उठाए हैं, मीडिया में भी मामला उछलता रहता है। जिन स्थानों के बारे में कहा जाता था कि थोड़ा सा खोद लो तो पानी मिल जाता है, चाहो कुआं बना लो, चाहो एक पाइप लगा कर हैंडपंप फिट कर लो, दुर्भाग्य से वहां अब स्थिति बदल चुकी है, पानी का दोहन इतना बेतरतीब हुआ कि नदियों के आसपास और नहरों के एरिया में भी पहले जैसी स्थिति नहीं रही। हैंडपंप की बात क्या करें, जेट पंप एवं सबमर्सिबल तक काम नहीं कर रहे हैं। कई जिलों में तो धरती फटने या धंसने की घटनाएं हुई हैं। प्रदेश पांच भौगोलिक क्षेत्रों में बंटा हुआ है। भाभर, तराई, मध्य गंगा का मैदान, कछारी मैदान और दक्षिणी विंध्य प्रायद्वीपीय क्षेत्र। प्रत्येक क्षेत्र के जल दोहन मानक अलग-अलग हैं। जहां उस क्षेत्र के मानक से स्तर नीचे चला गया है, उसे डार्क क्षेत्र कहा गया है। प्रदेश में डेढ़ सौ से अधिक ब्लाक डार्क जोन घोषित किए जा चुके हैं। यहां ट्यूबवेल बोर करने और इन्हें बिजली कनेक्शन दिए जाने पर भी रोक है।अफसोस कि सरकार की ओर से किए गए सुधारात्मक प्रयास सफल नहीं हो सके हैं। पानी का स्तर बराबर बने रहने अथवा ऊपर उठने की तो नौबत आ ही नहीं रही है, साल-दर-साल यह गिरता ही जा रहा है। शहरों में भूगर्भ भंडार का पानी बेचा जा रहा है, कभी टैंकरों से तो कोई बोतलबंद। किसानों को फसल की जरूरत के मुताबिक नहरों से पानी नहीं मिलता। ऐसे में बड़े किसान ट्यूबवेल से और छोटे किसान पंपिंग सेट से पानी दुह रहे हैं। इसे रोकने के लिए राज्य सरकार को सबसे पहले वर्षा जल संरक्षण पर काम करना होगा। नदियों का पानी रोकने को छोटे-छोटे चैक डैम व बाढ़ का पानी रोकने के लिए रबर डैम बनाने होंगे। साथ ही बड़े जलाशयों की संभावना पर भी विचार करना होगा। नए भवनों के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य करनी होगी और सख्ती के साथ सभी ट्यूबवेलों को बंद कराना होगा, फिर वे चाहे निजी हों या सरकारी। विश्र्वास किया जाना चाहिए कि सरकार ऐसा साहस दिखाएगी।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]