हरियाणा विधानसभा में सरकार ने स्वीकार किया है कि प्रदेश में प्रतिदिन एक बाल विवाह होता है। यह स्थिति तब है जबकि रोज बाल विवाह रुकवाए जाने की खबरें मिलती रहती हैं। लेकिन सरकारी मशीनरी के तमाम प्रयासों के बावजूद राज्य में बाल विवाह नहीं रुक पा रहे हैं। हालांकि सरकार ने इसे रोकने के लिए बाल विवाह कराने वाले पंडित और काजी भी कार्रवाई की योजना बनाई है। लेकिन यह बात तय है कि जब तक समाज इसके प्रति जागरूक नहीं होगा, तब तक यह बुराई नहीं रुकेगी। बाल विवाह एक ऐसी बुराई है जिसमें विवाह के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार न होने के कारण लड़के और लड़की पर शारीरिक और मानसिक दोनों ही लिहाज से अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस कारण दोनों के लिए ही एक पति, पिता, पत्नी और मां के रूप में अपनी जिम्मेदारी को निभाना कठिन होता है।
इस वजह से बचपन में ही वधू बन जाने वाली बच्चियां शारीरिक रूप से तरह-तरह की बीमारियों और अवसाद की शिकार हो जाती हैं। इस वजह से उनका बचपन खत्म हो जाता है और उनके बच्चे भी कुपोषण, कम वजन और अन्य अनेक बीमारियों के साथ पैदा होते हैं। बाल विवाह के दुष्परिणामों को देखते हुए ही भारतीय संविधान में लड़कों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और लड़की के लिए 18 वर्ष निर्धारित करके विभिन्न कानूनों और अधिनियम के माध्यमों से बाल विवाह को रोकने और उल्लंघन करने पर दंड का प्रावधान किया गया है परंतु ये प्रावधान तब धराशायी होकर रह जाते हैं जब इन मासूमों के सिर पर सेहरा और मांग में सिंदूर सजा दिया जाता है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार बाल विवाह के मामले में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर हैै। यदि आंकड़ों की बात करें तो पिछले साल तमाम प्रयासों के बावजूद सरकारी अधिकारी मात्र 129 बाल विवाह ही रुकवा सके। इससे स्पष्ट है कि सरकार के प्रयास तब तक नाकाफी साबित होंगे, जब तक समाज के लोग खुद इसके खिलाफ खड़े नहीं होंगे।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]