झारखंड की एक बड़ी चुनौती है बाल मजदूरी से मुक्ति पाना। पूरे राज्य की छवि पहले से ही बनी हुई है कि यहां आसानी से मजदूर मिल जाते हैं, बाल मजदूर भी। यह छवि महज कागजी नहीं बल्कि वास्तविकता है और राज्य की राजधानी से लेकर देश की राजधानी तकयही छवि पहुंची हुई है। इसे रोकने के लिए बनी व्यवस्था में कोई खामी नहीं लेकिन इसके लिए जिम्मेदार अधिकारी कार्रवाई करने से परहेज करते हैं और नतीजा सभी के सामने है। चंद अधिकारी ही बच्चों से मजदूरी कराने के खिलाफ दिल से कार्रवाई करते हैं और जब ऐसा होता है तो सभी प्रशंसा ही करते हैं। शुक्रवार को रांची के विभिन्न प्रतिष्ठानों से दो दर्जन बाल मजदूरों को मुक्त कराया गया। इन्हें काम पर रखने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई भी हुई और यहां के सफल होटलों में से एक रसिकलाल स्वीट्स के मालिकों को जेल भेजा गया। और भी कई लोग जेल गए। लेकिन सवाल यह कि दोषी लोगों की संख्या क्या सिर्फ इतनी ही है? क्या बाल मजदूर 24 ही हैं? नहीं, उत्तर सभी जानते हैं। हर गली, हर नुक्कड़ और दुकानों में बाल मजदूर आसानी से दिख जाते हैं। गंभीरता से कार्रवाई हो तो सैकड़ों लोग सलाखों के पीछे पहुंचेंगे।
शुक्रवार को रांची में एसडीओ की कार्रवाई के बाद बड़ी संख्या में लोगों ने इस कार्रवाई की प्रशंसा की। सोशल मीडिया सक्रिय हो गया है और तमाम शहरों से बाल मजदूरों की तस्वीरें अपलोड की जा रही हैं। एक संदेश देने की कोशिश की सिर्फ रांची नहीं, पूरे झारखंड में कार्रवाई हो। आखिर नन्हें-मुन्नें बच्चों को काम करते देखना किसे अच्छा लगता है। इस व्यवस्था के समर्थक कुछ लोग जरूर यह कहते हुए परोक्ष समर्थन करते हैं कि बच्चे काम नहीं करेंगे तो दाने-दाने को मोहताज हो जाएंगे। ऐसा नहीं है। तमाम योजनाएं हैं जो बच्चों की देखरेख और उनकी पढ़ाई जारी रखने में मदद कर सकती हैं।
कई समाजसेवी संस्थाएं हैं जो इनके भरण-पोषण का खर्च उठा सकती हैं। समस्या समाज के कुछ लोगों की है जो खुद को बदलना नहीं चाहते। काम कराने के लिए बाल मजदूर उन्हें बेहतर नजर आते हैं और अक्सर वे भूल जाते हैं कि उनके बच्चे भी इसी तरह के हैं अंतर सिर्फ आर्थिक निर्भरता की है। सरकार को ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।
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हाइलाइटर
हर गली, नुक्कड़ और दुकानों में बाल मजदूर आसानी से दिख जाते हैं। गंभीरता से कार्रवाई हो तो सैकड़ों लोग सलाखों के पीछे पहुंचेंगे।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]