देश में बढ़ रहे टीबी रोगियों की चिंता के बीच हिमाचल से इस रोग को जड़ से उखाड़ने की पहल करना स्वागत योग्य है। एशिया में 70 से 75 प्रतिशत लोग इस बीमारी से ग्रस्त हैं, जिनकी दुनिया में आबादी लगभग 6-7 करोड़ है। देश में करीब तीन मिनट में एक मौत टीबी रोग से हो जाती है। हर दिन 40 हजार नए रोगी इस बीमारी से संक्रमित हो रहे हैं। प्रदेश में इस रोग के विभागीय आंकड़े चौंकाने वाले हैं और साल दर साल इस रोग के मरीज बढ़ते ही जा रहे हैं।

यहां हर साल करीब 500 लोग इस रोग से मौत का शिकार हो रहे हैं। बावजूद इसके हिमाचल में रोग निवारण की सफलता दर 95 फीसद है, लेकिन जितने रोगियों का इलाज होता है, अगले वर्ष उतने ही नए और सामने आ जाते हैं। ऐसे में साफ है कि स्वास्थ्य विभाग क्षय रोग के बैक्टीरिया को रोकने के प्रयास तो कर रहा है पर आम लोगों तक इस मुहिम की पूरी पकड़ नहीं बन पा रही है। इस कारण प्रदेश क्षय यानी टीबी उन्मुक्त नहीं हो पा रहा है और यहां हर साल हजारों नए रोगी निकल रहे हैं। प्रदेश में लगातार बढ़ रहे स्वास्थ्य संस्थानों के बीच इस तरह के आंकड़े आना चिंता का विषय हैं कि लोग अपनी सेहत के प्रति कितने लापरवाह हैं।

सरकार ने लोगों को स्वस्थ बनाने के लिए योजनाएं तो चला रखी हैं लेकिन इस तरह के मामले आना बताता है कि इन योजनाओं का क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हो रहा है। हालांकि प्रदेश सरकार वर्ष 2021 तक राज्य को क्षय रोगमुक्त बनाने का दावा तो कर रही है, लेकिन हर वर्ष हजारों नए रोगियों के आने और पांच सौ के करीब रोगियों की उपचार के दौरान मौत होने का आंकड़ा साफ बता रहा है इस अभियान में कोई कोताही जरूर बरती जा रही है। इस रोग से हिमाचल को रोगमुक्त बनाने के लिए जरूरी है कि जब किसी मरीज की इस संबंध में पुष्टि हो तो उसका उपचार भी उसी स्तर पर शुरू कर दिया जाए।

संबंधित क्षेत्र के स्वास्थ्य उपकेंद्रों के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि कोई मरीज बिना दवा के इस तरह काल का ग्रास न बने।