कथित तौर पर सत्य की जीत के दावे के साथ बुलाई गई दिल्ली विधानसभा की बैठक में जो कुछ हुआ उसे असत्य को महिमामंडित करने की भोंडी कोशिश के अलावा और कुछ कहना कठिन है। उम्मीद की जा रही थी कि दिल्ली विधानसभा के इस विशेष सत्र में कपिल मिश्रा के आरोपों के जवाब दिए जा सकते हैं, लेकिन वहां इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम में छेड़छाड़ को बहुत आसान बताने का काम हुआ। इसके लिए ईवीएम के बजाय उसके जैसी मशीन पेश की गई और फिर यह दावा किया गया कि उसमें हेरफेर करना तो बाएं हाथ का खेल है। इस दावे को पुख्ता करने के लिए आम आदमी पार्टी के बीटेक डिग्रीधारी विधायक ईवीएम सरीखी मशीन लेकर सदन में आए। आखिर विधायक महोदय यह काम सदन के बाहर क्यों नहीं कर सके? क्या इसलिए कि सदन के विशेषाधिकार का मनमाना इस्तेमाल करने में आसानी हो सके और किसी सवाल का जवाब देने की गुंजाइश भी न रहे? यह गनीमत रही कि प्रबल बहुमत वाली आम आदमी पार्टी ने ऐसा कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया कि भविष्य में वह चुनाव तो लड़ेगी, लेकिन ईवीएम के बगैर। किसी के लिए भी यह समझना कठिन है कि जब चुनाव आयोग ईवीएम में छेड़छाड़ के संदेह को दूर करने के लिए सभी दलों की बैठक बुलाने ही जा रहा है और उसमें वह इस मशीन में हेरफेर के दावों की परख भी करेगा तब विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर तमाशा करने की क्या जरूरत थी? आखिर आम आदमी पार्टी तीन दिन और क्यों नहीं रुक सकती थी? कहीं उसने कथित सत्य की जीत की घोषणा इसलिए तो नहीं की ताकि जनता का ध्यान अन्य मुद्दों से हटे? हैरत नहीं कि अब आम आदमी पार्टी ऐसा कोई दावा करते हुए चुनाव आयोग की बैठक से कन्नी काट ले कि जो उसके विधायक ने दिल्ली विधानसभा में कर दिखाया वही अंतिम सत्य है।
यह अजीब है कि कपिल मिश्रा के सनसनीखेज आरोपों का जवाब देने के बजाय ईवीएम को सामने ले आया गया और वह भी नकली किस्म की। आखिर गोलपोस्ट बदलने का इससे सटीक उदाहरण और क्या होगा? नि:संदेह बहुमत वाली पार्टी विधायी सदन में कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन ऐसा करते समय वह लोक लाज का ध्यान रखे तो बेहतर। आज इस पर यकीन करना कठिन है कि आम आदमी पार्टी वही दल है जिसने नई तरह की राजनीति करने का वादा किया था। उसे पता होना चाहिए कि नई तरह की राजनीति के नाम पर नित नए तमाशे से लोग आजिज आ गए हैं। ईवीएम के खिलाफ रोना रोते रहने का तब कोई मतलब हो सकता था जब चुनाव आयोग आपत्तियों का संज्ञान नहीं ले रहा होता। वह न केवल आपत्तियों का संज्ञान ले रहा है, बल्कि ऐसे उपाय भी कर रहा है जिससे भविष्य में ईवीएम में छेड़छाड़ की बची-खुची आशंका को दूर किया जा सके। यदि कोई ईवीएम पर संदेह निवारण की चुनाव आयोग की कोशिश से संतुष्ट नहीं तो उसके पास अदालतों का दरवाजा खटखटाने की भी सुविधा है। आम आदमी पार्टी भी ऐसा कर सकती थी, लेकिन शायद उसका एक मात्र मकसद हर मामले में खुद को सही करार देना ही है।

[ मुख्य संपादकीय ]