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केंद्र सरकार ने बाल श्रम को प्रतिबंधित करते हुए अपराध करार दिया है, लेकिन प्रदेश की राजधानी शिमला से ऐसे मामले सामने आना चिंताजनक है।
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बचपन... जिंदगी का बहुत खूबसूरत सफर होता है। जीवन की भागदौड़ से दूर न कोई फिक्र, न चिंता। लेकिन, कुछ ऐसे भी मासूम हैं, जिनके लिए यह सफर घुटन और बेबसी से भरा होता है। उनके बचपन को लाचारी और गरीबी की नजर लग जाती है। इससे बाल मजदूरी और बाल श्रम जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है। बाल मजदूरी बच्चों की मासूमियत के बीच अभिशाप बनकर सामने आती है। बेशक सरकार ने इसे प्रतिबंधित व अपराध करार दिया है, लेकिन प्रदेश की राजधानी शिमला में ऐसे मामले सामने आना इस बात की ओर इशारा करता है कि दूरदराज के क्षेत्रों में स्थित कितनी खराब है। हैरानी की बात है कि प्रदेश सरकार ने आठ माह बाद भी केंद्र सरकार द्वारा संशोधित बाल श्रम (प्रतिबंध एवं नियमन) अधिनियम-2016 को लागू नहीं किया है। बाल मजदूरी पर लगाम के लिए भी ठोस योजना तैयार नहीं होना भी चिंता की विषय है। संशोधित बाल श्रम अधिनियम में उल्लंघन करने वालों के लिए सजा व भारी जुर्माना बढ़ाया गया है, लेकिन अब भी यह बुराई कम होने का नाम नहीं ले रही। वभागीय आंकड़े कहते है कि एक साल में करीब 100 बच्चों को बाल श्रम करते हुए छुड़वाया गया। इनमें हिमाचल के 30 और अन्य दूसरे राज्यों के थे। राजधानी के अलावा सोलन, सिरमौर, चंबा, कांगड़ा, कुल्लू व मनाली के ढाबों में 14 वर्ष से कम आयु के कई बच्चों से मजदूरी करवाई जा रही है। बेशक चाइल्ड हेल्पलाइन जैसी संस्थाएं इस दिशा में रोशनी की किरन बनकर समाने आई हैं, लेकिन इस बुराई को जड़ से खत्म करने के लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है। बाल श्रम का सबसे ज्यादा असर बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास पर पड़ता है। जिस उम्र में बच्चों को खेलकूद और शिक्षा लेकर अपना विकास होता हो, उसमें उन्हें मजदूरी के लिए मजबूर होना पड़ता है। मसला सिर्फ उनके विकास का नहीं, बल्कि उनकी जान का भी है। कारखानों आदि में कार्य करने वाले बाल श्रमिकों को जान का ज्यादा खतरा रहता है। इसका मुख्य कारण गरीबी, अशिक्षित समाज एवं बढ़ती जनसंख्या है। प्रदेश सरकार को इन कारणों की जड़ में जाकर उन्हें दूर करने का प्रयास करना होगा। सबसे अहम है कि लोग सोच बदलें व किसी बच्चे को काम पर रखने से पहले अपने बच्चों की तरफ भी देख लें। सभी बच्चों को संमान मानेंगे तो शायद ऐसी नौबत नहीं आएगी।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]