दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन और कॉलेज प्रबंधन दोनों को ही कैंटीन में फूड की गुणवता को लेकर गंभीर होना होगा और सख्त कदम उठाने होंगे
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देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में से एक दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के किसी भी कैंटीन में फूड सेफ्टी एंड स्टैैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआइ) का लाइसेंस नहीं होना डीयू की साख पर धब्बे की तरह है। सूचना का अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के मुताबिक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा कैंटीन के लिए बने दिशा-निर्देशों का पालन भी डीयू के ज्यादातर कॉलेजों में नहीं हो रहा है। डीयू के विभागों व आट्र्स फैकल्टी तक में कैंटीन बिना लाइसेंस के चल रही हैं। यह मसला सीधे तौर पर छात्रों, कर्मचारियों और शिक्षकों के स्वास्थ्य से जुड़ा है पर विवि प्रशासन इस मामले में कानून का उल्लंघन कर रहा है। ऐसे में सवाल उठना भी लाजिमी है।
डीयू की साख सिर्फ इसलिए नहीं है कि वहां शिक्षण का स्तर अच्छा है या वहां से उत्तीर्ण छात्र छात्राएं प्रतिष्ठित पदों पर आसीन होते हैं। बल्कि डीयू को हर स्तर पर अपने आप में एक मानक के रूप में देखा जाता है। ऐसा मान लिया जाता है कि डीयू से जुड़ा कुछ भी है तो वह स्तरीय ही होगा। इसलिए विश्वविद्यालय प्रशासन को इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत है। इस तरफ से प्रशासन के ध्यान नहीं देने से तमाम सवाल भी खड़े होते हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कि कैंटीन के ठेके देने में भ्रष्टाचार संलिप्त हो। यह भी संभव है कि निजी स्वार्थों के चलते ही ठेका देने वालों ने इस तथ्य को लेकर आंखें बंद कर ली हो। गौर करने लायक बात यह भी है कि यहां का खाना चूंकि अपेक्षाकृत सस्ता होता है, इसलिए हर वर्ग के विद्यार्थी इसे खाना पसंद करते हैं। अगर यह खाना स्वास्थ्यवर्धक नहीं है तो यह चिंताजनक है। लाखों छात्रों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ भला जायज कैसे कहा जा सकता है। विचारणीय पहलू यह भी है कि जिस डीयू से छात्र छात्राएं कानून और चिकित्सा सहित विभिन्न विधाओं में डिग्री लेकर जाते हैं, जहां उन्हें अनुशासन, ईमानदारी और संस्कारों का पाठ भी पढ़ाया जाता हो, वहीं पर मिलावट की ऐसी डोज कतई स्वीकार्य नहीं कही जा सकती है। कॉलेज प्रबंधन और विश्वविद्यालय प्रशासन दोनों को ही इस दिशा में गंभीर होना होगा और सख्त कदम उठाने होंगे।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]