केंद्र सरकार की ‘स्मार्ट सिटी’ योजना ने उत्तराखंड जैसे छोटे व भौगोलिक विषमता वाले राज्य को भी लंदन, पेरिस व शंघाई जैसे अत्याधुनिक व सुविधा संपन्न शहरों का सपना बुनने का सुनहरा अवसर दिया है। हालांकि, इस सुनहरे अवसर को बड़ी उपलब्धि में बदलने के लिए उत्तराखंड के किसी भी शहर को एक लंबा व चुनौतियों से भरा रास्ता तय करना होगा। दरअसल, स्मार्ट सिटी योजना के लिए शहरों के चयन के जो सख्त मानक और पारदर्शी प्रक्रिया केंद्रीय शहरी विकास मंत्रलय ने तय की है, प्रदेश का कोई भी बड़ा शहर मौजूदा परिस्थितियों में उन मानकों से फिलहाल कोसों दूर नजर आ रहा है।

उत्तराखंड में वर्तमान में छह नगर निगम क्षेत्र हैं जिनको महत्वाकांक्षी स्मार्ट सिटी योजना के लिए प्रमुख रूप से दावेदार माना जा रहा है, मगर इन सभी नगर निगम क्षेत्रों में न तो सड़क, पेयजल, बिजली, सीवरेज प्रणाली व ड्रेनेज सिस्टम जैसी बुनियादी नागरिक सुविधाएं वर्तमान में संतोषजनक हैं और न शहर के विस्तार की अपेक्षित गुंजाइश नजर आती है। इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि गुजरे वर्षो में नगरों के सुनियोजित व नियंत्रित विकास के प्रति सरकारी तंत्र जिस तरह से उदासीन ही बना रहा, राज्य के इन बड़े शहरों की तस्वीर को बदरंग बनाने में यह उदासीनता ही प्रमुख वजह बनी। नगर निकायों की संपत्तियों पर अवैध कब्जों व अतिक्रमण का मसला हो या नई बसावटों में विकास प्राधिकरणों के मास्टर प्लान की खुलेआम धज्जियां उड़ने का मामला, नगरीय क्षेत्रों में इस तरह की हर गुत्थी को सुलझाने में सरकारी तंत्र हर पल नाकाम ही साबित होता दिखा। तंत्र की यह नाकामी नगर निकायों की प्रशासनिक व वित्तीय व्यवस्था में सुधार के मोर्चे पर भी साफ दिखाई दी है।

यही वजह है कि निकायों को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाने की कोशिशें भी परवान नहीं चढ़ पा रही हैं। स्मार्ट सिटी योजना के लिए देश के 100 चुनिंदा शहरों के चयन की प्रतिपस्र्धा में उत्तराखंड के दावेदार शहर कहां खड़े नजर आएंगे, इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। जाहिर है स्मार्ट सिटी का सपना जितना बड़ा व भव्य है, उसे जमीन पर उतारने की राह तक पहुंचने के लिए राज्य सरकार के सामने चुनौतियों के उतने ही उच्च शिखर खड़े हैं। चुनौतियों के इन ऊंचे शिखरों को पार करने के लिए सरकार व उसके तंत्र को धरातल पर उतरना होगा। सुनियोजित ढांचागत विकास के साथ ही नागरिक सुविधाओं की बेहतरी व शहरी निकायों की कार्यसंस्कृति में आमूलचूल परिवर्तन भी लाना होगा। जाहिर है इसके लिए उम्दा सोच, कारगर रणनीति और दृढ़ इच्छाशक्ति के समावेश वाली कार्ययोजना पर समय रहते काम प्रारंभ करना होगा।

(स्थानीय संपादकीय उत्तराखंड)