दिल्ली में लोगों का पानी और बिजली की समस्या के चलते परेशान होना गंभीर चिंता का विषय है। यह समस्या जहां राजधानी में बिजली वितरण कर रही कंपनियों को कठघरे में खड़ा करती है, वहीं दिल्ली सरकार के कामकाज पर भी प्रश्नचिह्न लगाती है। जैसे ही गर्मी बढऩा शुरू हुई राजधानी के कई इलाकों में बिजली की कटौती शुरू हो गई, जबकि पानी की समस्या भी काफी समय से बनी हुई है। ऐसे कई इलाके हैं, जहां बीते कुछ दिनों से पानी नहीं पहुंच पा रहा है, जबकि कई जगह गंदे पानी की आपूर्ति हो रही है। दिल्ली सरकार का दावा है कि जल बोर्ड के पास आवश्यकता से अधिक मात्रा में पानी मौजूद है, ऐसे में मुख्यमंत्री का यह सवाल भी उचित है कि यदि जल बोर्ड के पास ज्यादा मात्रा में पानी उपलब्ध है तो यह पानी लोगों के घरों तक क्यों नहीं पहुंच पा रहा है? जल बोर्ड के सीईओ को पत्र लिखकर उन्होंने बोर्ड के प्रबंधन में गड़बड़ी की आशंका जताई है। निश्चित तौर पर इसकी जांच की जानी चाहिए और सुधार किया जाना चाहिए लेकिन प्रश्न यह भी उठता है कि विगत कई दिनों से पानी की समस्या से जूझ रहे दिल्ली के लोगों को राहत देने के लिए सरकार ने पहले ही कदम क्यों नहीं उठाए?
गर्मी में बिजली की मांग बढऩे के साथ ही विभिन्न इलाकों में कटौती भी शुरू हो गई है, जो दर्शाता है कि गर्मी के दिनों में बढ़ी मांग से पैदा होने वाली स्थिति से निपटने के लिए कोई योजना नहीं बनाई गई थी। गर्मी से पूर्व बनाया जाने वाला समर एक्शन प्लान आखिर क्यों नहीं बनाया गया? बिजली के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की दिशा में भी बीते कुछ समय में कोई उल्लेखनीय प्रयास नजर नहीं आता। बिजली कटौती की शिकायतों में पिछले सप्ताह के मुकाबले दोगुने से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। यह गंभीर मसला है, दिल्ली सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि बिजली कंपनियां जल्द से जल्द कटौती पर लगाम लगाएं। साथ ही लोगों की शिकायत पर तत्काल सुनवाई हो और शीघ्रातिशीघ्र उनका हल किया जाए। सरकार का यह प्रयास अवश्य स्वागतयोग्य है कि अघोषित कटौती होने पर बिजली कंपनियां लोगों को हर्जाना दें, लेकिन कोशिश यह होनी चाहिए कि बिजली कटौती की स्थिति ही न बनने पाए। राष्ट्रीय राजधानी में बिजली-पानी जैसी मूलभूत आवश्यकता की पूर्ति में समस्या को किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]