रिश्वत के बंटवारे को लेकर दिल्ली पुलिस के सब इंस्पेक्टर व हवलदार के बीच जमकर जूतम पैजार होने की घटना निहायत ही शर्मनाक है। दोनों ने एक-दूसरे का सिर तक फोड़ दिया। हालात बेकाबू होने पर थाने से ही पुलिस कंट्रोल रूम 100 नंबर पर कॉल भी करना पड़ गया। रातोंरात दोनों का तबादला भी कर दिया गया। लेकिन हैरत की बात यह कि इस मामले में रिपोर्ट किसी के खिलाफ दर्ज नहीं की गई। दक्षिण जिले में घटी इस तरह की घटना ने पूरे पुलिस विभाग की पोल खोलकर रख दी है। यह घटना इस बात का सुबूत है कि पुलिस विभाग में भ्रष्टाचार की जड़ें काफी गहरी हैैं। सवाल यह है कि जब दो लोगों के बीच झगड़ा होता है तो यही पुलिस फौरन मुकदमा दर्ज करने की बात करती है। जब कोई पुलिस के साथ बदसुलूकी करता है तो पुलिस उसी वक्त रिपोर्ट दर्ज कर लेती है। लेकिन दो पुलिसकर्मियों ने थाना परिसर में ही झगड़ा किया लेकिन इस पर रिपोर्ट तक दर्ज करने तक की जहमत नहीं उठाई। इस तरह की दोतरफा नीति कहीं से भी सही नहीं कही जा सकती।
दिल्ली देश की राजधानी है। इस लिहाज से तो यह घटना दिन प्रतिदिन बदतर होती जा रही कानून व्यवस्था को बयां करने के लिए काफी है। जब पुलिसकर्मी रिश्वत लेने और उसे बांटने में मशरूफ रहेंगे, तब अपराध भला कहां रुक पाएंगे। पुलिस के आला अधिकारियों को गंभीरता से सोचने और कोई कारगर कार्ययोजना बनाने की जरूरत है। ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि दिल्ली की घटनाएं जल्द ही सुर्खियों में आती हैैं और इन पर सबकी निगाहें लगी होती हैैं। दिल्ली पुलिस को यह भी सोचना होगा कि उसकी गिनती देश की सबसे तेजतर्रार पुलिस फोर्स में होती है तो उसकी यह नैतिक जिम्मेदारी भी है कि वह ना केवल आपराधिक वारदातों पर अंकुश रखे, बल्कि अनुशासन की मिसाल भी पेश करे। इस तरह की घटनाएं तो उसकी रही सही साख पर भी बट्टा लगा देंगी। शायद इसीलिए जनता का भरोसा भी पुलिस पर से उठता जा रहा है। पुलिस थाने में जाने से भी लोग इसीलिए कतराने लगे हैं कि उनकी समस्या का निराकरण हो या नहीं, लेकिन उनकी जेब जरूर हल्की हो जाएगी। यह स्थिति अच्छी तो खैर किसी भी शहर के लिए नहीं है मगर दिल्ली के लिए अक्षम्य की श्रेणी में रखी जा सकती है।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]