-----गरीब परिवार से ताल्लुक रखने के कारण ये बालिकाएं न तो आवाज उठा पाने में सक्षम हो पाती हैं और न परिवारी जन की इतनी पहुंच होती है कि उनकी आवाज कहीं सुनी जाए।-----गत दिनों मुजफ्फरनगर में कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय में जो कुछ भी हुआ, वह काफी शर्मनाक था। वार्डन की हरकतों के कारण उसे निलंबित कर दिया गया लेकिन, घटना ने कई सवाल भी उठा दिए हैं, जिनका जवाब खोजा जाना जरूरी है। कस्तूरबा गांधी विद्यालय की परिकल्पना बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी। इस विद्यालय की 75 फीसद सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की बालिकाओं के लिए सुरक्षित हैं। जाहिर सी बात है इस वर्ग की बालिकाएं अति गरीब और पिछड़े परिवारों से ताल्लुक रखती हैं। इसलिए उन्हें परिवार की आर्थिक चिंताओं से दूर रखकर विद्यालय में पढ़ने और वहीं रहने की व्यवस्था की गई है।सरकारी मंशा से दूर इन विद्यालयों के अधिसंख्य स्टाफ की मानसिकता नहीं बदली है। इसके कारण ज्यादातर कस्तूरबा विद्यालयों में बालिकाओं को न स्तरीय शिक्षा प्राप्त हो रही है और न ही रहन-सहन की दशाएं ठीक हैं। उनका सही ढंग से विकास भी नहीं हो पा रहा है। समुचित देखभाल के अभाव में इन विद्यालयों में शिक्षा का स्तर गिर रहा है। सशक्त निगहबानी न होने के कारण यहां भ्रष्टाचार और अराजकता का बोलबाला है। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने के कारण ये बालिकाएं न तो आवाज उठा पाने में सक्षम हो पाती हैं और न परिवारी जन की इतनी पहुंच होती है कि उनकी आवाज कहीं सुनी जाए। मजबूरी में बालिकाओं को सारे कष्ट और अपमान सहते हुए शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती है। यही कारण है कि इन विद्यालयों में तमाम तरह की गड़बडि़यां सामने आती रहती हैं, दो-चार दिन हो-हल्ला मचने के बाद फिर सब कुछ शांत हो जाता है। खराब खानपान के कारण कई बार छात्राओं के बीमार पड़ने, उचित इलाज न मिलने, रहन-सहन की खराब दशाओं के कारण मानसिक परेशानी जैसी बातें भी सामने आती हैं। कई बार तो दैहिक शोषण तक की शिकायतें सामने आई है। कुल मिलाकर पिछड़े वर्ग के उन्नयन, उत्थान के लिए सरकार चाहे जो भी प्रयास कर रही हो, पर उसका पूरा लाभ उन्हें नहीं मिल पाता है। कस्तूरबा विद्यालय की बालिकाओं के साथ होने वाला व्यवहार भी इसका प्रमाण है। अब समय आ गया है, जब किसी भी सरकारी योजना का समुचित लाभ संबंधित वर्ग तक पहुंचाने के लिए उसकी समग्र निगरानी का तंत्र विकसित किया जाए। तंत्र और स्टाफ को जवाबदेह औऱ जिम्मेदार भी बनाया जाए। अन्यथा सरकारी खजाना खाली होता रहेगा, पर वास्तविक लक्ष्य कभी प्राप्त नहीं होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]