जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी की समस्या को देखते हुए उद्योगपतियों को निवेश करने के लिए आमंत्रित करना सराहनीय है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि मुख्यमंत्री ने उद्योगपतियों को राज्य में निवेश का न्योता दिया हो लेकिन अभी तक सरकार के प्रयास सुखद नहीं रहे हैं। बीते वर्ष देश के जाने-माने उद्योगपति रतन टाटा सहित कई अन्य दिग्गजों ने सरकार को उम्मीद बंधाई थी कि वे यहां पर अपने उद्योगों को स्थापित करेंगे। घाटी के हालात जिस प्रकार से अशांत रहते हैं, उसे देखते हुए अपने फैसले पर सभी पुनर्विचार करने को विवश हो जाते हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि अनुच्छेद 370 और आतंकवाद के कारण कभी उद्योगपतियों के लिए जम्मू-कश्मीर प्राथमिकता पर नहीं रहा है। यही नहीं, यहां की भौगोलिक स्थिति और मौसम भी इसके आड़े आता है। यह अच्छी बात है कि मुख्यमंत्री बावजूद इसके उद्योगपतियों को आकर्षित करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। राज्य में उद्योग इसीलिए भी अहम हैं क्योंकि विगत वर्षो में बेरोजगारों की संख्या पांच लाख के आंकड़े को पार कर चुकी है और यह हर साल बढ़ती जा रही है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि राज्य सरकारों ने बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए शेर-ए-कश्मीर रोजगार योजना, ओवरसीज रोजगार कॉरपोरेशन का गठन किया लेकिन इनके परिणाम अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहे। ओवरसीज कॉरपोरेशन को बंद करने का निर्णय इसका द्योतक है। राज्य में पूर्व नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस सरकार के समय में रोजगार नीति बनाई गई और उसके तहत हजारों युवाओं को बेरोजगारी भत्ता भी दिया जाता था लेकिन यह नाकाफी था। युवा रोजगार चाहते हैं और सरकार का दायित्व है कि वह उन्हें रोजगार के अवसर उत्पन्न करके दे। यह सही है कि हर किसी को सरकार सरकारी नौकरी नहीं दे सकती लेकिन सरकार उद्योगपतियों और निजी क्षेत्र को बढ़ावा देकर रोजगार का सृजन तो कर रही सकती है। विडंबना यह है कि उद्योगों को सरकार की ओर से कभी बढ़ावा नहीं दिया गया, जिससे कि इस क्षेत्र में युवाओं को रोजगार मिल सके। जम्मू-कश्मीर एक संवेदनशील राज्य है और यहां पर बेरोजगार युवाओं को कई आतंकवादी संगठनों ने रुपयों का झांसा देकर अपने साथ शामिल किया। इन पहलुओं पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]