इन दिनों राज्य में तरह-तरह के फर्जीवाड़ों का खुलासा हो रहा है। बिहार कर्मचारी चयन आयोग की जांच अभी चल ही रही है कि सपने बेच लोगों को लूटने वाले गिरोह के कारनामे उजागर हुए। बेरोजगारी का आलम यह है कि बगैर सोचे समझे लोग कर्ज लेकर भी नौकरी पाने के लिए पैसे खर्च करने से गुरेज नहीं कर रहे। थोड़ी सी सर्तकता से ऐसी ठगी से बचा जा सकता है, लेकिन लोगों की भीड़ ऐसी कि बगैर विचार किए सभी उसी ओर दौड़ पड़ते हैं। हालांकि ऐसे लोगों से साथ सहानुभूति भी नहीं रखी जा सकती, जो रिश्वत देकर नौकरी पाने की लालसा रखते हों। पटना के रूपसपुर में ठगी करने वाले इस गिरोह ने ढाई सौ से ज्यादा युवकों को झांसे में ले रखा था। यदि भंडाफोड़ न हुआ होता तो हजारों की संख्या में लोग ठगी के शिकार हो चुके होते। प्रारंभिक अनुमान के मुताबिक गर्दन तक पुलिस के हाथ पहुंचते-पहुंचते राज केयर फाउंडेशन नामक एनजीओ ने युवकों से पांच करोड़ रुपये ऐंठ लिए थे। इस एनजीओ ने दीनदयाल बाल शिक्षा ज्योति योजना के तहत शिक्षक और समन्वयक के पद पर बहाली का झांसा दे रखा था। सिर्फ फार्म भरने के समय बारह हजार रुपये वसूले जा रहे थे। नौकरी के लिए दस-दस लाख रुपये पर मसौदा तय हुआ था। कल्पना की जा सकती है कि कुछ दिन और इस एनजीओ का खेल चलता रहता तो ठगी की राशि किस स्तर पर पहुंचती। पूछताछ में यह भी जानकारी मिली है कि इस गिरोह के तार दिल्ली, मुंबई और कोलकाता समेत कई राज्यों के शहर से जुड़े हैं। पुलिस के हाथ आया सरगना पटना का ही निवासी है। उसके साथ पकड़े गए लोगों में पटना और सहरसा के रहने वाले हैं। जाहिर है, इस गिरोह के लोगों ने स्थानीय स्तर पर भी संवाद कर लोगों को फांसा होगा। वैसे इस गिरोह ने इश्तेहार भी दिया था और वेबसाइट भी बना रखी थी। वेबसाइट से आवेदन डाउनलोड किया जा सकता था। आवेदन करने वाले लोगों को दफ्तर बुलाकर विश्वास में लिया जाता था। उन्हें यह बताया जाता था कि सिर्फ बिहार में चालीस हजार शिक्षकों और आठ हजार आठ सौ समन्वयकों की बहाली होनी है। कोई शक न करे इसलिए इस फर्जी बहाली को केंद्र सरकार की योजना बताया जाता था। पूछताछ में पुलिस ने दिल्ली के कुछ ठिकानों का पता लगाया है। पटना पुलिस को चाहिए कि इसकी त्वरित जांच कर अन्य राज्यों को भी सतर्क करे, ताकि बेरोजगार लुटने से बचें।
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हाईलाइटर
बगैर जांच पड़ताल के नौकरी या किसी अन्य सेवा के लिए पैसा लगाना काफी जोखिम भरा है। बेरोजगार युवकों को उसी समय शक होना चाहिए था, जब आवेदन के साथ बारह हजार रुपये मांगे जा रहे थे। पुलिस थोड़ी भी शिथिलता बरतती तो ठगी के शिकार लोगों की संख्या हजारों में हो सकती थी।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]