उत्तराखंड को भारी बरसात से इस वर्ष अब तक लगभग एक हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है, जबकि आगामी सितंबर माह तक प्रारंभिक नुकसान का ये आकलन 1500 करोड़ तक पहुंच सकता है। राज्य सरकार ने इस भारी नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र से 500 करोड़ रुपये की तत्काल सहायता का अनुरोध किया है। दरअसल, भौगोलिक विषमता वाले प्रदेश में अति सीमित संसाधनों की वजह से केंद्र सरकार से मदद की गुहार करना उत्तराखंड की मजबूरी है। अलबत्ता, केंद्र से मिलने वाली वित्तीय सहायता का आपदा प्रभावित क्षेत्रों में बेहतर उपयोग हो, इसके लिए राज्य सरकार को पूरी पारदर्शिता व दृढ़ता के साथ अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। प्राकृतिक आपदा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर जिस तरह उत्तराखंड से जुड़े जनप्रतिनिधि अक्सर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर प्रयासरत नजर आते हैं, वह भी सराहनीय है। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जहां इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर मदद की गुहार लगाई है, वहीं उत्तराखंड के सांसद भी लोकसभा में इस मसले को पुरजोर ढंग से उठा रहे हैं। उम्मीद है कि मुख्यमंत्री व सांसदों के प्रयासों को देखते हुए केंद्र सरकार भी उत्तराखंड के आपदा प्रभावित क्षेत्रों में नुकसान की भरपाई के लिए जल्द वित्तीय मदद उपलब्ध कराएगी। अलबत्ता, महत्वपूर्ण सवाल यही है कि प्रदेश की सरकारी मशीनरी प्रभावित क्षेत्रों की बेहतरी के लिए उस मदद का किस तरह से सदुपयोग करती है। दूसरा अहम पहलू यह भी है कि प्राकृतिक आपदा की घटनाओं के बाद हर बार मदद के लिए केंद्र में दस्तक देने की बजाय प्रदेश को खुद आत्मनिर्भर बनने की दिशा में भी ठोस प्रयास करने की जरूरत है। यदि उत्तराखंड आज भी पूरी तरह केंद्र की इमदाद के ही भरोसे पर है, तो इससे साफ जाहिर होता है कि 2013 में प्राकृतिक आपदा से हुई भीषण तबाही से राज्य ने कोई सबक नहीं लिया। बेशक, पहाड़ी राज्य के पास वित्तीय संसाधनों का भारी अभाव है और ऐसे में केंद्र से मदद मांगना राज्य का अधिकार भी है, मगर फिर भी प्रदेश को ऐसी विपदाओं से अपने बूते निपटने में समक्ष बनाना ही होगा। खासतौर पर नियोजन की प्रक्रिया में दैवीय आपदा के जोखिमों को भी ध्यान में रखने की कार्यप्रणाली विकसित करने की जरूरत है। विकास योजनाओं का खाका बनाते वक्त यदि इन पहलुओं को ध्यान में रखकर निर्णय किए जाएं, तो दैवीय आपदा से होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है। डिजास्टर रिस्क रिडक्शन की इस मुहिम को राज्य के सभी सरकारी महकमों को अपनी कार्यप्रणाली का हिस्सा बनाना होगा, ताकि आपदा की हर घटना के बाद केंद्रीय मदद का इंतजार न करना पड़े।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]