हाईलाइटर
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मुख्य सचिव के नेतृत्व में 22 आइएएस अफसरों की टीम गठित की गई है जो गांवों में पेयजल की मौजूदा हालात से सरकार को अवगत कराएगी।
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हाई कोर्ट की फटकार के बाद ही सही निर्मल जल की जिस शिद्दत से खोज शुरू हुई है, वह बेहतर भविष्य की राह का अगला कदम है। हाई कोर्ट ने हाल में ही इस बात के लिए झारखंड की मुख्य सचिव राजबाला वर्मा को कड़ी फटकार लगाई थी कि राज्य में आधी जनता को पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है। जल आपूर्ति से जुड़ा प्रसंग जल संचयन का भी है। अभी 'दैनिक जागरण' अपने जनहित जागरण अभियान के तहत पूरे झारखंड की वास्तविक तस्वीर रख चुका है कि पानी के लिए वर्तमान समय में ही राह कितनी कठिन है। मुख्य सचिव के नेतृत्व में 22 आइएएस अफसरों की टीम गठित की गई है जो आठ-दस गांवों में पेयजल की मौजूदा हालात से सरकार को अवगत कराएगी। इस प्रकार सरकार के पास कम से कम सवा दो सौ गांव की तस्वीर सामने होगी कि वहां जलापूर्ति की वास्तविक हालत क्या है? अपने लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के साथ ही सरकार ने पंचायती राज को भी पेयजल आपूर्ति के लिए संसाधनों से युक्त किया है। टैंकरों की खरीद के लिए इन संस्थानों को भी मदद दी गई है। अफसरों के आकलन में इसकी भी रिपोर्टिंग होगी। एक रोड मैप भी बनेगा जो भविष्य में गांवों में पेयजलापूर्ति की राह का रोड़ा दूर करेगा। इस समय गांव में टैंकर तो दिये गये हैं पर टैंकरों को एक-जगह से दूसरी जगह ले जाने का संसाधन नहीं है। कई जगहों पर वह स्रोत नहीं है, जिससे सहजता से पेयजल इन टैंकरों में भरा जा सके। चूंकि अफसरों का यह निरीक्षण समयनिष्ठ है और इसे इस माह की आखिरी तारीख तक पूरा कर लेना है, इसलिए कुछ अच्छे की उम्मीद तो की ही जा सकती है। बड़ा सवाल यह कि पानी के लिए भी अगर कोर्ट को फटकार लगानी पड़े तो फिर लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा का क्या होगा? इस भीषण गर्मी में जब पानी के लिए हाहाकार मचा है तब हमारा तंत्र पानी की खोज में जुटा है। यह सब तो पहले भी हो सकता था। जल संरक्षण की अनिवार्यता बढ़ेगी तभी झारखंड में पानी की वास्तविक जरूरत का समाधान संभव है और तभी जल की खोज पर विराम भी।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]