जम्मू विकास प्राधिकरण (जेडीए) के हाई कोर्ट के निर्देश का अनुपालन करते हुए शहर के साथ लगते सिद्धड़ा इलाके में पिछले एक सप्ताह से अतिक्रमणकारियों के खिलाफ चलाया जा रहा अभियान सराहनीय है। इस अभियान के तहत जेडीए ने अभी तक सत्तर कनाल कब्जाई जमीन को तो छुड़ा लिया है, लेकिन इनमें सैकड़ों वे लोग शामिल हैं, जिन्हें भूमाफिया ने यह जमीन धोखे से बेची है। वे लोग अब खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। भूमाफिया अक्सर वन भूमि और सरकारी जमीन पर कब्जा कर लेता है। इसमें राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। धीरे-धीरे कब्जा की गई जमीन पर प्लॉट काटे जाते हैं, फिर इन्हें औने पौने दाम पर बेच दिय जाता है। इतना ही नहीं खरीदारों को राजस्व रिकॉर्ड में खसरा आदि नंबर भी दिखा कर उनका विश्वास जीत लिया जाता है। खसरे में जमीन तो होती है, लेकिन यह जमीन का टुकड़ा कहां पर है, इसकी जानकारी नहीं होती। जब जेडीए और नगर निगम के अधिकारी अपनी जमीन की निशानदेही करने जाते हैं तब लोगों को पता चलता है कि जिस जमीन का दावा वे कर रहे होते हैं, दरअसल वे उन्हें धोखे से बेची गई होती है। लोगों को भी चाहिए कि जमीन खरीदते समय रजिस्ट्री जरूर करवा लें। अन्यथा कहीं आप भूमाफिया के चक्कर में आकर अपने खून पसीने की कमाई न गवां बैठे। केरन में भी सैकड़ों ऐसे लोग हैं, जो अब सड़कों पर आ गए हैं। यह अफसोस की बात है कि राज्य में करीब लाखों कनाल वन भूमि पर अवैध कब्जे हुए पड़े हैं। शहर के साथ लगते नगरोटा के खानपुर और बन तलाब के मझीन, रंगूरा, सिद्धड़ा आदि इलाके में अभी भी सैकड़ों कनाल भूमि पर हुए अवैध कब्जे को सरकार खाली नहीं करवा पाई है। बेशक गुज्जर-बक्करवाल समुदाय को जंगल में अस्थायी रूप से कुल्ले बनाने और भेड़-बकरियों को चराने की अनुमति है, लेकिन इस अनुमति की आड़ में कुछ लोग वन भूमि पर पक्के मकान बनाकर अपना स्वार्थ साध रहे हैं। समुदाय के लोग चारागाहों की तलाश में गर्मियों के मौसम में पहाड़ों पर चले जाते हैं और सर्दियों में मैदानी इलाकों में आ जाते हैं। लिहाजा समुदाय को भी वन विभाग का सहयोग करते हुए अतिक्रमण विरोधी मुहिम को आगे बढ़ाने देना चाहिए। वन विभाग को चाहिए कि वह समुदाय के प्रतिनिधियों और पुलिस व अन्य विभाग के अधिकारियों को साथ लेकर अवैध कब्जे को हटाए।

स्थानीय संपादकीय- जम्मू