जम्मू संभाग में तेज बारिश ने बरसात से पहले नालों और खड्डों में हुए अतिक्रमण की पोल खोल कर रख दी है। करीब दस घंटे हुई बारिश ने सरकार को आगाह कर दिया है कि अगर शहरों और कस्बों से गुजरने वाले बरसाती नालों पर हुए अतिक्रमण को नहीं हटाया गया तो आने वाले दिन लोगों के लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं। विडंबना यह है कि इन बरसाती नालों की भराई करने के बाद सरकारी जमीनों पर कब्जा जमाने वालों में अधिकतर नेता और नौकरशाह शामिल हैं, जिन्हें प्रशासन की ओर से भी संरक्षण मिल रहा है। कुल मिला कर यह कहा जाए कि प्रशासन भी भू-माफिया के आगे नतमस्तक है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान बरसाती नालों का स्वरूप ही बदल दिया गया है। जिन नालों की चौड़ाई सौ फुट हुआ करती थी अब मात्र आधी रह गई है, जिसका नतीजा आज देखने को मिला जब स्कूल जा रही तीन मासूम बच्चियां पानी में बह गर्ईं। दो की मौत हो गई, जबकि एक को लोगों ने जिंदा बचा लिया। कुछ बरसाती नालों व खड्डों पर अतिक्रमण नहीं हटाया गया तो लोगों की जान फिर खतरे में पड़ सकती है। राजस्व विभाग ने नालों पर अतिक्रमण न करने के लिए नोटिस तो जारी किया है, लेकिन यह मात्र औपचारिकता है। सरकार राज्य में वर्ष 2014 में आई बाढ़ को भुला बैठी है, जिसमें सैकड़ों लोगों को जान गंवानी पड़ी थी। राज्यभर में सरकारी भूमि पर हुए अतिक्रमण को हटाने के लिए पुख्ता नीति बनाने की आवश्यकता है। जम्मू-कश्मीर में करीब बीस लाख कनाल भूमि पर मंत्रियों और नौकरशाहों का कब्जा है, जिसमें वन भूमि के अलावा गैर मुमकिन खड्ड भी शामिल हैं। वन भूमि के बाद राज्य में बरसाती नालों पर सबसे अधिक अतिक्रमण हुआ है। अभी भी समय है कि प्रशासन नालों पर अतिक्रमण हटाने के लिए व्यापक अभियान चलाए। इसमें कोई भेदभाव न हो। प्रशासन को राजनीति के प्रभाव में न आकर अपने विवेक से फैसला लेना होगा, क्योंकि यह लोगों की जिंदगी का सवाल है। इसके अलावा यह सुनिश्चित बनाया जाए कि एक नाले में उतने ही छोटे नालों को जोड़ा जाए, जितनी पानी की निकासी संभव हो। अगर गैर योजनाबद्ध तरीके से इनका निर्माण होगा तो नि:संदेह समस्या जस की तस बनी रहेगी।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]