हरियाणा बोर्ड के परीक्षा परिणाम में एक बार फिर बेटियों ने तमाम चुनौतियों को पार करते हुए न केवल परचम फहराया बल्कि लड़कों को काफी पीछे छोड़ दिया। इतना ही कला व कॉमर्स संकाय की टॉपर सूची में भी बेटियों का जलवा रहा। बेटियों के जोश को देखकर लगता है कि भविष्य में भी यह सिलसिला थमने वाला नहीं है। ऐसे में अब चिंता यह करने की आवश्यकता पड़ सकती है कि कहीं बेटे पिछड़ न जाएं। बेटियां बार-बार यह साबित कर रही हैं कि वह न केवल उत्साह के साथ आगे बढ़ना चाहती है, साथ ही वह राह में आने वाली बाधाओं से भिड़ने के लिए भी तत्पर हैं। इसके लिए भले ही सरकार या व्यवस्था से सीधे लोहा लेना पड़े। सामाजिक दबाव व बाहरी चुनौतियों को उन्होंने अपनी ताकत बना लिया है। रेवाड़ी में शिक्षा के लिए वे न केवल सरकार के खिलाफ डट गईं और अनशन कर सीधे व्यवस्था को चुनौती ही दे डाली। अंतत: सरकार को झुकना पड़ा और स्कूल को अपग्रेड करने पर राजी भी हो गई। अभी हाल में हुई एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में भी प्रदेश की बेटियों ने देश का नाम रोशन करते हुए छह पदक झटके।
बेटियों का यह हौसला यूं ही बढ़ता रहे, यह सुनिश्चित करना समाज व अभिभावकों की भी जिम्मेवारी है। इस बार का परीक्षा परिणाम खास इसीलिए भी रहा कि ग्रामीण स्कूल शहरी के मुकाबले आगे हो गए। सरकारी स्कूल भी निजी स्कूलों से बेहतर प्रदर्शन करते दिखे। टॉप में जगह बनाने वाले अधिकतर विद्यार्थी सामान्य परिवारों से हैं। यह साबित करता है कि प्रतिभाएं किसी भी चुनौती को पार करने में सक्षम है। कुछ बेटियां तो विपरीत घरेलू परिस्थितियों के बावजूद सफलता को छू गईं। स्कूली शिक्षा में बेटियों की सफलता की शुरुआत भर है। उच्च शिक्षा व करियर में भी यह सफर यूं ही चलता रहे। इसके लिए आवश्यक है कि उन्हें लड़कों के बराबर माहौल मिल सके। बेटियों की उपलब्धियों की यह गाथा उन अभिभावकों को भी प्रेरित करेगी जो बेटे की चाह में बेटियों को कोख में ही मार देते हैं।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]