दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध में कमी न आना गंभीर चिंता का विषय है। यह स्थिति दर्शाती है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए किए जा रहे प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। वसंत विहार सामूहिक दुष्कर्म कांड के बाद से राजधानी में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में कई स्तरों पर बहुत बड़ी-बड़ी बातें हुई हैं। कई योजनाएं भी बनाई गईं, उनपर कुछ अमल भी हुआ, लेकिन नतीजा धरातल पर कहीं नजर नहीं आया। दिल्ली में दुष्कर्म की घटनाओं के आंकड़ों पर गौर करें तो विगत तीन वर्षों से ये संख्या दो हजार के ऊपर बनी हुई है। इस वर्ष भी 15 मार्च तक करीब चार सौ ऐसे मामले सामने आए हैं। यही नहीं, इस अवधि में निजता भंग व छेड़छाड़ के भी करीब आठ सौ मामले सामने आ चुके हैं, जो महिलाओं की सुरक्षा के लिए किए जा रहे प्रयासों की हकीकत बयां करते हैं। वैसे, महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने को लेकर दिल्ली पुलिस के पास गिनाने के लिए कुछ चीजें अवश्य हैं। पीसीआर वैन की संख्या बढ़ाई गई है, महिला पीसीआर वैन की तैनाती की गई है। सार्वजनिक स्थलों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। हिम्मत एप लांच किए जाने के साथ ही महिलाओं को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण भी दिया गया है। लेकिन दिल्ली पुलिस द्वारा उठाए गए इन कदमों के बावजूद स्थिति में कोई उल्लेखनीय सुधार नजर नहीं आता।
प्रश्न यह उठता है कि आखिर क्या वजह है कि कई स्तरों पर गंभीर चिंता जताए जाने और इस दिशा में प्रयास भी किए जाने के बावजूद स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है? क्या ऐसा है कि जो उपाय किए गए हैं, वे नाकाफी हैं जिसकी वजह से वे प्रभावी नजर नहीं आ रहे हैं या फिर सरकारी उदासीनता इन उपायों पर भारी पड़ रही है। आवश्यकता इस बात की है कि महिला सुरक्षा के लिए ऐसे उपाय किए जाएं और उन्हें इस तरह अमल में लाया जाए कि उनका असर साफ नजर आए। महिलाएं घर के बाहर सुरक्षित भी हों और उनमें सुरक्षा का भाव भी पैदा हो। इसके लिए आवश्यक है कि पुलिस और प्रशासन के स्तर पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए किए जा रहे प्रयासों की ईमानदारी से समीक्षा की जाए। जिन कारणों से ये प्रयास प्रभावी नहीं हो पा रहे हैं, उन्हें सामने लाया जाए और तत्काल सुधार किया जाए। महिला सुरक्षा एक गंभीर मसला है, जिसमें किसी तरह की लापरवाही अस्वीकार्य है।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]