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विद्यार्थियों पर हमला घाटी में बिगड़े हालात को भड़काने की कोशिश के समान है, इससे पत्थरबाजों और हमलावरों में अंतर नहीं रह जाएगा
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घाटी में सुरक्षा बलों पर पथराव की घटनाओं के बाद देश के विभिन्न कॉलेजों में पढ़ रहे कश्मीरी छात्रों पर हो रहे हमले दुर्भाग्यपूर्ण हैं। यह ओछी हरकत है, इससे तो पत्थरबाजों और हमलावरों में कोई अंतर नहीं रह जाएगा। कश्मीर में पत्थरबाजों के पीछे कुछ संगठन हैं, जो उन्हें भड़का कर अपना स्वार्थ साध रहे हैं, लेकिन कॉलेज में हमलावरों के पीछे कौन लोग हैं, उनकी पहचान जरूरी है। इससे द्वेष की भावना बढ़ेगी। देश के एक प्रतिष्ठित इंजीनियङ्क्षरग संस्थान में पढ़ रहे कश्मीरी छात्र पर हमला घाटी में बिगड़े हालात को और भड़काने की कोशिश के समान है। देशभर के कई छात्र जम्मू-कश्मीर के प्रतिष्ठित इंजीनियङ्क्षरग कॉलेज और विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे हैं। ऐसी घटनाओं से अभिभावकों की चिंताएं भी बढ़ जाएंगी, जिन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए घाटी और घाटी से बाहर भेजा है। एक के बाद एक इस तरह की घटनाओं से समस्या का हल नहीं ढूंढ़ा जा सकता। इस प्रकार की घटनाओं से क्या संदेश देने का प्रयास किया जा रहा है? क्या उच्च शिक्षण संस्थानों में सब कुछ सामान्य नहीं है? इससे तो क्षेत्रीय भेदभाव को बढ़ावा मिलेगा। विद्यार्थियों को यह समझना होगा कि इन संस्थानों पर देश का भविष्य निर्भर करता है। यहीं से पढ़कर विद्यार्थी प्रशासनिक पदों पर बैठने के साथ-साथ देश का नेतृत्व करने में भी सक्षम बनते हैं। कुछ कश्मीरी छात्रों द्वारा विश्वविद्यालयों में देश विरोधी नारे लगाना एक फैशन बनता जा रहा है। इसके लिए कहीं न कहीं विश्वविद्यालय प्रबंधन भी जिम्मेदार हैं। यह सही है कि विश्वविद्यालयों में इस प्रकार की घटनाओं को प्रशासन अक्सर नजरंदाज कर देता है लेकिन अगर उसी समय ऐसे विद्यार्थियों को समझाया जाए और उनकी ऊर्जा को देश निर्माण में इस्तेमाल किया जाए तो बेहतर होगा। दुख की बात है कि इस समस्या का हल ढूंढऩे के बजाए कुछ नेता स्वार्थ साधने की कोशिश करते हैं। ऐसी घटनाओं पर सरकार को भी गंभीरता से सोचना होगा। उसे यह भी जांच करवाने की आवश्यकता है कि कहीं किसी सोची समझी साजिश के तहत तो यहां के शांत माहौल को खराब करने का प्रयास नहीं किया जा रहा। अगर ऐसा है तो ऐसे तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है। इसके अलावा छात्र संगठनों को भी ऐसी मुहिम छेडऩी होगी कि कॉलेजों में आपसी सौहार्द बना रहे।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]