पंजाब की सड़कें हादसों के कारण लगातार रक्तरंजित हो रही हैं। एक हादसे में बही लहू की छींटें ठीक से सूख भी नहीं पाती कि दूसरे हादसे में कहीं किसी घर का चिराग बुझ जाता है तो कहीं किसी परिवार का सहारा छिन जाता है। हालात इस कदर भयावह हैं कि हादसों में मरने वालों की संख्या की तुलना आतंकवाद के दौर में मारे गए लोगों की संख्या से होने लगी है और निष्कर्ष यह निकलता है कि उस काले दौर में भी उतनी जानें नहीं गईं, जितनी सड़क हादसों में चली गईं। ज्यादातर हादसे या तो लापरवाही से होते हैं या नियमों का उल्लंघन करने पर अथवा तेज रफ्तार के कारण। आवश्यकता से अधिक भार लेकर चलने वाले वाहन खासतौर पर मौत बनकर सड़कों पर घूमते रहते हैं। वीरवार को ऐसा ही एक वाहन जीरा में मक्खू के पास नेशनल हाईवे पर 11 लोगों का काल बन गया। कोयले से लदा यह ओवरलोड ट्राला एक टवेरा गाड़ी पर पलट गया, जिसमें 14 लोग सवार थे। ऐसा ही एक हादसा दिसंबर माह के आखिरी सप्ताह में जालंधर में भी हुआ था। बीएसएफ चौक पर मिट्टी से ओवरलोड टिप्पर एक फाच्यरूनर कार पर पलट गया था, जिसमें पंजाब रोडवेज के असिस्टेंट डायरेक्टर के 19 वर्षीय बेटे की मौत हो गई थी। इसके अतिरिक्त फरवरी माह के पहले सप्ताह में ही तरनतारन में राजस्थान नेशनल हाईवे पर कस्बा हरीके पत्तन के पास एक निजी बस व कार के बीच टक्कर में चार लोगों की व होशियारपुर के हंदोवाल में कार व मोटरसाइकिल की टक्कर में एक युवक की मौत हो गई थी। जनवरी माह में भी यही हाल रहा। सड़क पर नियमों की अवहेलना करने वाले खुद तो मरते ही हैं, साथ ही अन्य वाहन चालकों व यात्रियों की जान को भी जोखिम में डालते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि नियम तोड़ने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। ट्रैफिक पुलिस को भी महज चालान काटने से आगे यातायात नियमों का पालन सुनिश्चित करते हुए दिखना होगा। वाहन चालक हों अथवा पुलिसकर्मी, जब तक सभी अपने कर्तव्य का पालन ईमानदारी से नहीं करते तब तक हालात में परिवर्तन की उम्मीद नहीं की जा सकती।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]