प्रदेश में अस्पतालों और घरों से निकलने वाले कचरे को ठिकाने लगाने वाले नियम सिर्फ फाइलों तक ही सीमित हैं। इससे प्रदेश के नदी-नाले भी प्रदूषित हो रहे हैं।
 प्रदेश में ठोस कचरे को ठिकाने लगाना चुनौती बना हुआ है। कई स्थानों पर लोग की घर की चौखट से कचरा उठाकर सड़क या नदी-नालों में फेंक देते हैं। कई जगह लोगों के घर से कचरा उठाने के बाद नगर परिषद या अन्य स्थानीय निकाय खेल में फेंक देते हैं। प्रदेश में हालत यह है कि अस्पतालों से निकलने वाले कचरे को भी खुले में फेंका जा रहा है। प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल शिमला से कचरा अलग-अलग निकाला जाता है, मगर भरयाल स्थित कूड़ा संयंत्र में इसे कूड़ा खुले में जलाया जाता है। इससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। यही हाल डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल कांगड़ा स्थित टांडा का है। सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बावजूद प्रदेश में ठोस कचरा संयंत्र स्थापित नहीं किए गए हैं। यही कारण है कि प्रदेश के आठ स्थानों पर कचरे ने नदियों को दूषित कर दिया है। राजधानी सहित प्रदेश के दूसरे शहरों से कचरा घरों से अलग करके निकलता है, मगर गाड़ी में एक साथ भरकर खुले में फेंक दिया जाता है। व्यवस्था इस कद्र बिगड़ी है कि शिमला का ठोस कचरा संयंत्र कई वर्ष पहले बंद हो गया है। सलोगड़ा स्थित कचरा प्रबंधन संस्थान में पूरे कचरे को वैज्ञानिक तकनीक से निपटाया नहीं जाता। छोटे शहरों से निकलने वाले कूड़े ने नदियों का पानी भी दूषित कर दिया है। सतजुल नदी रामपुर से दूषित होना शुरू होती है और भाखड़ा तक इसमें कई छोटे शहरों का कचरा पानी को विषैला कर रहा है। हिमाचल पर्यटन राज्य है और यहां की सैरगाहों में विदेशी पर्यटकों के साथ-साथ दूसरे राज्यों से लाखों पर्यटक यहां सुकून पाने के लिए आते हैं, लेकिन यहां कचरे से हवा में भी जहर घुल रहा है। प्रदेश के सभी शहरी क्षेत्रों से रोजाना 300 से 350 मीटिक टन कूड़ा कचरा निकलता है। इस कूड़े को अलग-अलग तरीके से ठिकाने लगाना जरूरी है। कचरे को ठिकाने लगाने के लिए नियमों का पालन न होना हिमाचल की सेहत के लिए ठीक नहीं है। व्यवस्था में सुधार करके नियमों के अनुसार इसका निस्तारण जरूरी है। इसके लिए संबंधित जिला प्रशासन को सख्त कदम उठाने की जरूरत है। पंचायत स्तर पर इसकी पहल करनी होगी। जब तक सख्ती नहीं बरती जाएगी तब तक कोई नियम और कानून काम नहीं कर सकता। अगर यही हालात रहे तो वह दिन दूर नहीं जब लोग हिमाचल आने से भी तौबा करने लगेंगे।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]