आबकारी महकमे का काम केवल राजस्व वसूली नहीं है। महकमे को समाज व जनता के हितों का भी ध्यान रखना होगा। इसके लिए दुकानों की स्वीकृति ऐसे स्थानों पर दी जानी चाहिए, जहां इनका सबसे कम दुष्प्रभाव पड़े।
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प्रदेश में शराब की दुकानों को लेकर इन दिनों हंगामे की स्थिति है। सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख के बाद शराब की दुकानों को हाईवे से हटाया जा रहा है। इन दुकानों को अब रिहायशी इलाकों में शिफ्ट करने की तैयारी चल रही है, वह चिंताजनक है। इससे होने वाले दुष्परिणाम को शासन व प्रशासन की ओर से नजरंदाज किए जाने का ही परिणाम है कि मातृशक्ति ने विरोध का बिगुल फूंक दिया है। यह बात सही है कि आबकारी महकमा प्रदेश में सबसे अधिक राजस्व देने वाले महकमों में से एक है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से नेशनल व स्टेट हाइवे के पांच सौ मीटर के दायरे में शराब बिक्री पर रोक लगाने के निर्णय के बाद प्रदेश की तकरीबन 76 फीसद दुकानें इसकी जद में आई हैं। आबकारी महकमे को शराब की दुकानों से होने वाली आय की 80 प्रतिशत आय इन्हीं दुकानों से होती है। जाहिर है कि आबकारी महकमा इन दुकानों को बंद करने की सोच भी नहीं सकता। यही कारण भी है कि अब इन दुकानों को अन्यत्र शिफ्ट कराने की कवायद चल रही है। प्रदेश में तेजी से बढ़ती आबादी के कारण गैर आबादी वाले क्षेत्र काफी कम है। चूंकि लाइसेंसधारकों को ही आबकारी की नई दुकानें ढंूढनी है इसके लिए वे संभावित बाजार को देखते हुए आबादी वाले क्षेत्रों में ही दुकानें तलाश रहे हैं। इसके लिए अच्छा किराया देने के कारण इन्हें दुकानें तो मिल जा रही हैं लेकिन क्षेत्रवासी माहौल बिगडऩे की आशंका से इनका विरोध कर रहे हैं। हालांकि, कुछ स्थानों पर व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता भी इस विरोध का कारण बन रही है। बावजूद इसके रिहायशी इलाकों में शराब के ठेकों को खोलना किसी भी लिहाज से सही नहीं ठहराया जा सकता। शराब के नशे में पर्वतीय क्षेत्रों में कई परिवार टूट के बिखरे हैं। यहां लोगों को दिन भर की कमाई शराब पर लुटाते देखा गया है। इन परिस्थितियों में रिहायशी क्षेत्रों में शराब के ठेके खोलने के खिलाफ मातृशक्ति का गुस्सा जायज माना जा सकता है। राजस्व के लिए किसी क्षेत्र का माहौल बिगाडऩे का अधिकार किसी को नहीं है। यह सही है कि राजस्व प्रदेश के विकास के लिए बेहद जरूरी है। यह भी सही है कि शराबबंदी इस समस्या का हल नहीं है। इस स्थिति में आबकारी महकमा दुकानदारों पर दुकानें ढूंढने का काम देकर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। सरकार को भी इस विषय की गंभीरता समझने की जरूरत है। इसके लिए ऐसा रास्ता तलाशा जाना चाहिए जिससे समाज में माहौल बिगडऩे की स्थिति भी न बने और विभाग को राजस्व भी मिलता रहे।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]