उत्तराखंड में बाघों की बढ़ती तादाद सुखद अहसास के साथ ही चुनौतियां बढ़ाने वाला भी है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए महकमे को सतर्क रहना होगा।

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71 फीसद वन भूभाग वाला उत्तराखंड के लिए यह गौरव का विषय है कि जल्द ही वह बाघों की संख्या के मामले में कर्नाटक को भी मात दे सकता है। जैसे संकेत मिल रहे हैं उससे लग रहा है कि उत्तराखंड बाघों की तादाद के लिए देश में सिरमौर बन जाएगा। विश्व प्रसिद्ध कार्बेट टाइगर रिजर्व और राजाजी टाइगर रिजर्व में की गई गणना के संकेत उत्साहित करने वाले हैं। दोनों जगह कैमरा ट्रैप में कैद बाघों का मूवमेंट बता रहा है कि दोनों स्थान बाघों के लिए किसी जन्नत से कम नहीं। शायद यही वजह है कि प्रदेश में दो और टाइगर रिजर्व बनाने की कवायद जोरों पर है और इसी के साथ उत्तराखंड उत्तर भारत का ऐसा पहला राज्य होगा जहां चार टाइगर रिजर्व क्षेत्र होंगे। बावजूद इसके दूसरे पहलूओं को भी नजर अदाज नहीं किया जा सकता। निसंदेह इससे चुनौतियां भी बढ़ेंगी और सबसे बड़ी चुनौती है मानव-वन्य जीव संघर्ष। दरअसल, आंकड़ गवाह हैं कि 16 साल में यह संघर्ष 600 से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है और तीन हजार से ज्यादा आज भी जख्मों के साथ जिंदगी गुजारने को विवश हैं। प्रतिवर्ष के हिसाब से औसत निकाला जाए तो मौत का आंकड़ा 36 और घायलों का 182 बैठता है। हालात की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि पिछले वर्ष नरभक्षी को पकडऩे के लिए रामनगर में देश का सबसे बड़ा अभियान चला। यह पहला अभियान था जिसमें सैकड़ों कर्मचारियों की टीम के साथ ही हेलीकॉप्टर और ड्रोन का इस्तेमाल किया गया। सप्ताह भर पहले ही रामनगर में बाघ के हमले में दो लोगों ने जान गंवाई और उसे पकडऩे में आठ घंटे का वक्त लग गया। हालांकि बाघ की भी मौत हो गई, जिस पर अब विवाद जारी है। वन्य जीवों के हमलों से आतंकित लोग किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। कुछ साल पहले रिखणीखाल ब्लाक में आक्रोशित लोगों ने पिंजरे में फंसे गुलदार को जिंदा जला डाला तो विकासनगर क्षेत्र में एक गुलदार को कुल्हाड़ी से काट डाला गया। ये घटनाएं बता रही हैं कि चुनौतियों को गंभीरता से न लिया गया तो स्थितियां क्या हो सकती हैं। जाहिर है इससे निपटने के लिए विभाग को उनके वास स्थल पर खास ध्यान देना होगा। यह जरूरी है कि जंगल में भोजन की कमी न हो। दरअसल, शाकाहारी जीवों की वृद्धि दर कम होने का खामियाजा ही मानव-वन्य जीव संघर्ष के रूप में सामने आता है। बात सिर्फ यहीं खत्म नहीं हो जाती। शिकारियों के निशाने पर रहने वाले इन दोनों नेशनल पार्क में अब और भी सतर्कता की जरूरत है।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]