मतदान में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) हैक किए जाने की 'राजनीतिक बहस' के बीच जदयू ने एक बार फिर अपनी अलग सोच पेश की। चुनाव आयोग के साथ आयोजित मीटिंग में जहां अधिसंख्य पार्टियां ईवीएम की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करके भविष्य में बैलेट पेपर के जरिए चुनाव कराए जाने की मांग कर रही थीं, वहीं जदयू ने बैलेट पेपर वोटिंग के अनुभव को अत्यधिक कटु बताते हुए ईवीएम के ही जरिए चुनाव कराए जाने की मांग की। जदयू ने यह मांग जरूर रखी कि भविष्य में ईवीएम को वीवीपैट (वोटर वैरिफाइएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) प्रणाली के साथ सम्बद्ध किया जाए। चुनाव आयोग ने जदयू सहित सभी पार्टियों को आश्वस्त किया कि वीवीपैट प्रणाली लागू किए जाने की कवायद चल रही है। जहां तक ईवीएम हैक किए जाने का सवाल है, यह यूपी सहित कई राज्यों में बुरी तरह परास्त हुईं राजनीतिक पार्टियों का 'सुविधाजनक आरोप' है। इन पार्टियों को समझना चाहिए कि कबूतर के आंखें बंद कर लेने से शिकारी बिल्ली उसे बख्श नहीं देती। सभी पार्टियों को जनादेश का सच्चे हृदय से सम्मान करना चाहिए। अतीत में जब इन्हीं वोटिंग मशीनों से हुए चुनाव में नतीजे इन पार्टियों के पक्ष में रहे थे, तब किसी को ईवीएम पर शक नहीं हुआ था। वास्तव में सपा, बसपा, राजद और कई अन्य दलों द्वारा ईवीएम हैक किए जाने का आरोप लगाना जनतांत्रिक व्यवस्था का निरादर है। इस हास्यास्पद आरोप से पूरी दुनियां में भारत का मजाक बन रहा है। कटु सत्य तो यह है कि ईवीएम मतदान प्रणाली लागू होने के बाद समाज के दलित-वंचित वर्गों को वास्तव में मताधिकार प्राप्त हुआ। बैलेट वोटिंग के दौर में खासकर यूपी और बिहार में बैलेट पेपर लूटकर फर्जी मतदान की घटनाएं आम बात थीं। दलित-वंचित जातियों के मतदाताओं को मतदान की पूर्वसंध्या पर ही आगाह कर दिया जाता था कि वे मतदान के दिन अपने घरों से न निकलें। उनके वोट डाल दिए जाएंगे। अगले दिन यही होता था। ईवीएम ने भारत की चुनाव प्रणाली का चेहरा बदला है। बूथ कैप्चङ्क्षरग और बैलेट लूट की घटनाएं इतिहास बन चुकी हैं। कुछ राजनीतिक पार्टियों को यह पारदर्शिता पसंद नहीं आ रही, लिहाजा वे ईवीएम को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। चुनाव आयोग ने इन पार्टियों को यह साबित करने की चुनौती दी है कि वे ईवीएम हैक करके दिखाएं। क्या राजनीतिक पार्टियों में इतनी नैतिकता बाकी है कि यह साबित न कर पाने पर वे देश के सभी मतदाताओं से माफी मांगें?
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ईवीएम हैक किए जाने का आरोप महज 'राजनीतिक चुटकुला' है जिसके लिए भारत की जगहंसाई हो रही है। जरूरी है कि राजनीतिक पार्टियां यह आरोप साबित करें अन्यथा जनादेश के निरादर के लिए देश के सभी मतदाताओं से माफी मांगें।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]