रोहतक के पोस्ट ग्र्रेजुएशन इंस्टीट्यूटऑफ मेडिकल साइंसेज (पीजीआइ) में हाई टेक्नोलॉजी मॉर्चरी में बनने वाली टॉक्सीक्लॉजी लैब में अब विसरा की जांच होगी तो लोगों को भटकना नहीं पड़ेगा। नहरों में बहकर आने वाले लावारिस शव हों या फिर अन्य परिस्थितियों में होने वाली मौत, देर से मिलने वाले सभी शवों के लिए विसरा, डीएनए, नाखून, फिंगर प्रिंट और बालों की फोरेंसिक जांच के लिए मधुबन की विधि विज्ञान प्रयोगशाला पर आधारित रहना पड़ता है। केसों की संख्या ज्यादा होने पर जांच में एक सप्ताह से छह महीने तक का समय लग जाना सामान्य सी बात है। यदि रोहतक पीजीआइ में ही यह सुविधा शुरू हो जाएगी तो इससे जांच करने वाले पुलिस अधिकारियों को काफी सहूलियत मिलेगी।
सरकार ने इसके लिए 20 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट स्वीकार कर दिया है। 2 जून को मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर इसका उद्घाटन करेंगे। ऐसा पहले ही किया जाना जरूरी था, लेकिन थोड़ी देर से ही सही, यह एक दुरूस्त और जरूरी कदम है। बहुत सारे मामलों में जांच अधिकारी रिमाइंडर भेजते रहते थे, लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद भी नमूनों की जांच रिपोर्ट नहीं आ पाती थी। इस वजह से जांच में देरी होती है। पीड़ित मौत का कारण जानने के लिए जांच रिपोर्ट के इंतजार में थक हारकर टूट जाते थे। केस की सुनवाई में भी विलंब होता था। इससे शीघ्रता होगी और न्याय भी जल्द मिलेगा। सरकार को इसके साथ ही फोरेंसिक लैब को अन्य आधुनिक तकनीकों से लैस करना चाहिए। फोरेंसिक लैब की रिपोर्ट अपराध की जांच में तो मददगार होती ही है, अपराधियों के खिलाफ पुख्ता सुबूत भी होती है और पीड़ित को न्याय मिलता है। इसलिए सरकार को इस संबंध में गंभीरता से विचार करना चाहिए। यह समय की मांग है और जरूरत भी।

[  स्थानीय संपादकीय : हरियाणा  ]