जाम से अरबों रुपये का ईंधन बर्बाद होता है। ऐसे में सरकार कुछ ऐसा नियम बनाए जिससे लोग निजी वाहनों की खरीदारी से पहले सोचें।
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समय व स्थान के मुताबिक पार्किंग नीति बनाने का उपराज्यपाल अनिल बैजल का निर्देश समय की मांग है। इससे पता चलता है कि वह राजधानी में पार्किंग की समस्या को लेकर बेहद चिंतित हैैं। उनका मानना है कि दिल्ली की सबसे बड़ी समस्या पार्किंग भी है। यह समस्या दिन प्रतिदिन सुरसा की भांति अपना प्रकोप रोजाना बढ़ाती ही जा रही है। हालात इस कदर बेकाबू हैैं कि रोजाना ही पार्किंग को लेकर आपसी विवाद की खबरें सामने आती रहती हैैं। यही नहीं कई बार तो आक्रोश में हत्या तक की वारदात भी हो चुकी है। इसके बावजूद आज तक नगर निगम हो या फिर अन्य निकाय, इस बारे में कभी भी कोई कारगर व्यवस्था नहीं कर पाए। अब उपराज्यपाल के सख्त निर्देश के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में कुछ कारगर व्यवस्था हो सकती है। हालांकि इसके लिए जरूरी है कि सभी निकाय अपनी-अपनी जिम्मेदारी समझें और योजना बनाएं। योजना बनाते वक्त यह भी ध्यान में रखें कि उसका बोझ इतना अधिक न हो कि लोग वहन न कर सकें।
दरअसल, दिल्ली में वाहनों की कुल संख्या 97 लाख के करीब पहुंच चुकी है। दिल्ली सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण में यह बात कही गई थी। सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक 2015-16 में प्रति हजार जनसंख्या पर वाहनों की संख्या 530 तक पहुंच गई है। इससे एक साल पहले यह संख्या 491 थी। इससे साफ है कि जहां दिल्ली की आर्थिक समृद्धि बढ़ी है वहीं वाहनों की संख्या भी बढ़ी है। ऐसे में इन वाहनों को खड़ा करने के लिए जगह की भी जरूरत है। लेकिन राजधानी में बढ़ती जनसंख्या के लिहाज से यह मुमकिन नहीं है। यही वजह है कि ज्यादातर गाडिय़ां सड़कों पर खड़ी रहती हैैं। यहां तक कि बाजारों में पार्किंग की सही व्यवस्था नहीं है। जाम से अरबों रुपये का न सिर्फ ईंधन बर्बाद होता है बल्कि वक्त भी जाया होता है। ऐसे में जरूरी है कि सरकार कुछ ऐसा नियम बनाए जिससे लोग निजी वाहनों की खरीदारी करने से पहले सोचें। जब तक ऐसा नहीं होगा पार्किंग को लेकर होने वाली समस्या का समाधान मुमकिन नहीं है।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]