शिक्षा निदेशालय द्वारा डीडीए की जमीन पर बने निजी स्कूलों को आदेश दिया जाना कि वे बिना अनुमति के फीस नहीं बढ़ा सकते, अभिभावकों के लिए राहत भरा है। इससे साफ है कि शिक्षा निदेशालय इस मामले में काफी सख्त रुख अपनाने का फैसला कर चुका है। यही वजह है कि उसने बकायदा सुर्कलर भी जारी कर दिया है। अच्छी बात यह है कि स्कूलों से 30 अप्रैल तक निदेशालय की स्वीकृति के लिए अपना प्रस्ताव भी भेजने को कहा गया है। इस प्रस्ताव में श्रेणी के हिसाब से बढ़ोतरी का ब्यौरा भी देना होगा। इससे साफ है कि शिक्षा निदेशालय निजी स्कूलों को पूरा मौका भी देना चाहता है। अब इन स्कूलों को चाहिए कि वह इस फैसले का सम्मान करें और नियमों का पालन करें। इससे जहां अभिभावक अतिरिक्त बोझ से बच सकेंगे, वहीं स्कूल भी अपने खर्चों को दिखाकर नियमानुसार फीस बढ़ोतरी कर सकेंगे।
इस बीच बड़ा सवाल यह है कि क्या इस बार निजी स्कूल शिक्षा निदेशालय के इस आदेश का पालन करेंगे? यह कोई पहली बार नहीं है जब इस तरह का आदेश शिक्षा निदेशालय ने जारी किया हो। इससे पहले भी ऐसे आदेश जारी होते रहे हैैं लेकिन स्कूलों की मनमानी बदस्तूर कायम रहती है। हर साल ही दस फीसद तक फीस बढ़ा दी जाती है। अभिभावक आवाज उठाते भी हैं, लेकिन सुनवाई कभी-कभी ही होती है। अदालत के आदेश तक की इन स्कूलों को परवाह नहीं है। यही वजह है कि ऐसा लगने लगा है कि निजी स्कूल अब शिक्षा का मंदिर न रहकर दुकान या शोरूम हो गए हैं जहां सुख-सुविधाओं और शानोशौकत के हिसाब से शिक्षा की बोली लगती है। इस स्थिति पर नकेल कसी जानी बहुत जरूरी है। विडंबना यह भी कि निजी स्कूल सिर्फ टयूशन फीस ही नहीं बढ़ाते बल्कि विभिन्न अन्य मदों में भी इजाफा कर देते हैं। किताबें, वर्दी और स्टेशनरी का सामान भी ज्यादातर जगह स्कूल से ही लेना अनिवार्य कर दिया गया है। ऐसे में अभिभावक स्वयं को लाचार महसूस करने लगते हैैं। इसलिए शिक्षा निदेशालय को चाहिए कि सिर्फ आदेश ही न निकाले बल्कि उस पर सख्ती से अमल भी सुनिश्चित कराए। साथ ही जो निजी स्कूल इसका पालन करने में आनाकानी दिखाएं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई भी हो।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]