कन्नड़ दार्शनिक बसवेश्वर की स्मृति में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिला सशक्तीकरण के संदर्भ में उनके विचारों को रेखांकित करते हुए यह जो कहा कि तीन तलाक के मसले पर उन्हें यह उम्मीद है कि इस बुराई के खिलाफ मुस्लिम समाज के लोग खुद ही आगे आएंगे उस पर इस समुदाय को गंभीरता से विचार करना चाहिए। यह मुस्लिम समाज के अपने हित में है कि वह तीन तलाक के खिलाफ खड़ा हो। यदि वह ऐसा कर सके तो फिर अन्य किसी को इस मसले पर टीका-टिप्पणी करने और इस मसले के कथित राजनीतिकरण की कोई जरूरत ही नहीं रह जाएगी। प्रधानमंत्री ने यह सही कहा कि जब राजा राम मोहन राय ने पहली बार विधवा विवाह के पक्ष में आवाज उठाई होगी तो उस समय कुछ लोगों ने उनकी आलोचना की होगी। यह एक तथ्य है कि जब भी समाज सुधार की कोई पहल हुई तो प्रारंभ में उसका उस समाज के अंदर से ही विरोध हुआ, लेकिन समय के साथ विरोध करने वाले पीछे हटे। तीन तलाक के मामले में भी ऐसा हो सकता है, यदि मुस्लिम समाज के लोग खुद ही इस मांग का समर्थन करें कि महिलाओं की प्रताड़ना का कारण बनने वाली तीन तलाक की कुप्रथा समाप्त हो। इस कुप्रथा का महिमामंडन करने वाले महिलाओं के हितैषी नहीं हो सकते। मुस्लिम समुदाय इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि किस तरह उनके समाज की महिलाएं तीन तलाक के खिलाफ आवाज उठा रही हैं? इस मामले में मौलवियों और मौलानाओं के साथ कई मुस्लिम नेताओं का रवैया ठीक वैसा ही है जैसा कभी राजा राम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर आदि का विरोध करने वालों का था।
जिस तरह मुस्लिम समुदाय का यह दायित्व बनता है कि वह अपने समाज की महिलाओं की गरिमा की रक्षा करने के लिए आगे आए उसी तरह अन्य समुदायों को भी यह देखना होगा कि कहीं किसी सामाजिक अथवा धार्मिक मान्यता के कारण उनके समाज की महिलाएं उपेक्षित तो नहीं हैं? यह काम इसलिए प्राथमिकता के आधार पर होना चाहिए, क्योंकि भारत में महिलाओं की स्थिति में तमाम सुधार होने के बावजूद काफी कुछ किया जाना शेष है। अभी कोई भी समुदाय यह दावा करने की स्थिति में नहीं कि उनके समाज की महिलाओं को आगे बढ़ने के हर संभव अवसर उपलब्ध हैं और उनकी किसी तरह अनदेखी या उपेक्षा नहीं होती। देश की हर महिला को पर्याप्त आदर-सम्मान न केवल घर-परिवार में, बल्कि सार्वजनिक स्थलों में भी मिलना चाहिए। यह आदर्श स्थिति नहीं कि घर-परिवार से निकलते ही महिलाओं की राह में तरह-तरह की बाधाएं खड़ी नजर आएं। इन बाधाओं में एक सबसे बड़ी बाधा सार्वजनिक स्थलों में महिलाओं की सुरक्षा का सवाल है। यह चिंताजनक है कि यह सवाल लगातार गंभीर होता जा रहा है। इस सत्य को स्वीकार किया जाना चाहिए कि अपने देश में महिलाओं के प्रति वैसा स्वस्थ दृष्टिकोण विकसित नहीं हो पाया है जैसा कि अपेक्षित है। इसका एक बड़ा कारण महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक समझे जाने की प्रवृत्ति है। बेहतर होगा कि इस प्रवृत्ति के खिलाफ भारतीय समाज के हर तबके के लोग आगे आएं। ऐसा करके ही देश को सामाजिक तौर पर और सशक्त बनाया जा सकता है।

[ मुख्य संपादकीय ]