पंजाब में नेशनल हाईवे व स्टेट हाईवे के किनारे 500 मीटर के दायरे में होटलों, रेस्टोरेंट व बार में शराब परोसने की छूट के लिए विधानसभा में बेशक बिल पास किया गया हो, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जिस उद्देश्य से इस पर रोक लगाई थी, उसका भी सम्मान किया जाना चाहिए। यह ठीक है कि रोक के बाद हाईवे किनारे के होटलों, रेस्टोरेंटों व बार की आय और सरकार को मिलने वाले राजस्व पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था, इसलिए सरकार को इनमें शराब परोसने की छूट के लिए बिल लाना पड़ा।

इससे निश्चित रूप से इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को बड़ी राहत मिलेगी और बड़ी संख्या में लोगों का रोजगार भी बच जाएगा, लेकिन इसकी उचित निगरानी की व्यवस्था भी करनी होगी, ताकि इसकी आड़ में फिर शराब की खरीद-फरोख्त न शुरू हो जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर इसलिए रोक लगाई थी, क्योंकि ठेकों के साथ ही इन स्थलों पर भी आसानी से शराब मिलने के कारण वाहन चालक शराब पीकर हाईवे पर वाहन दौड़ाते थे और अक्सर हादसों का कारण बन जाते थे। प्रदेश में होने वाले हादसों में सबसे बड़ी संख्या हाईवे के हादसों की ही होती थी। शराब का नशा ही इस हालात के पीछे सबसे बड़ा कारण था, जिसे रोका जाना बेहद जरूरी हो गया था। लेकिन सरकार के राजस्व से जुड़ा मामला होने के कारण इसे रोका जाना कतई आसान नहीं था।

कदाचित यही कारण था कि इस पर रोक लगाने के लिए अदालत में लंबी लड़ाई लड़ी गई और अंततोगत्वा कोर्ट ने सकारात्मक फैसला दिया। हालांकि अब सरकार ने एक बिल लाकर कुछ हद तक इस फैसले के प्रभाव को कम कर दिया है, लेकिन सरकार और प्रशासन को यह ध्यान रखना होगा कि कहीं हालात पहले जैसे न हो जाएं। यह ठीक है कि प्रदेश के विकास के लिए राजस्व वसूली भी बहुत जरूरी है, लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि किसी के जीवन से बढ़कर कुछ भी नहीं है।

इसलिए सरकार को चाहिए कि वह कड़ी निगरानी व्यवस्था भी लागू करे, ताकि कोई भी नियमों का उल्लंघन न कर सके, अन्यथा यह कोर्ट के अच्छे उद्देश्य पर पानी फेरने वाला फैसला ही साबित होगा और हाईवे पर धीरे-धीरे सुधर रहे हालात फिर जस के तस हो जाएंगे।

[पंजाब संपादकीय]