नशामुक्ति के पक्ष में अभूतपूर्व मानव श्रृंखला के आयोजन ने साबित कर दिया कि संकल्प में शक्ति हो तो उसके पहलू विश्व कीर्तिमान गढऩे लगते हैं। करीब नौ महीने पहले जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी लागू करने जा रहे थे, उस वक्त शायद उन्हें भी यकीन नहीं रहा होगा कि उनके इस संकल्प को ऐसा जन समर्थन मिलेगा। इसीलिए शुरू में वह फूंक-फूंककर कदम रख रहे थे। पहले 1 अप्रैल को देसी शराब पर रोक लगाई। इस पर अनुकूल प्रतिक्रिया भांपकर उनका मनोबल बढ़ा तो 4 अप्रैल को पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी। इसकी स्वीकार्यता बढऩे से उनका मनोबल और मजबूत हो गया। अब अगला लक्ष्य 'नशामुक्त बिहार' है जिसका सफर ऐतिहासिक मानव श्रृंखला के साथ शुरू हो चुका है। मानव श्रृंखला में कतारबद्ध मुख्यमंत्री को बेशक संतोष हुआ होगा कि शराबबंदी के विभिन्न पड़ावों पर परोक्ष-अपरोक्ष रूप से किसी न किसी बहाने उनके फैसले पर आपत्तियां खड़े करने वाले लोग भी अंतत: उनके साथ खड़े हो गए हैं। भाजपा का इस अभियान में नीतीश कुमार के साथ आना अहम घटना है क्योंकि इससे शराबबंदी एवं नशामुक्ति पर सर्वसम्मति जैसा माहौल दिखने लगा है। इससे राज्य की राजनीतिक दिशा के बारे में भी सकारात्मक संदेश निकला। मकर संक्रांति पर दियारा में दुर्भाग्यपूर्ण नाव हादसे के बाद शासन-प्रशासन ने एक बार फिर अपनी प्रबंधन क्षमता का कौशल दिखाया। करीब दो करोड़ लोगों की भागीदारी वाली राज्यव्यापी मानव श्रृंखला का सकुशल आयोजन बड़ी उपलब्धि है। गुरु गोविंद सिंह प्रकाशोत्सव के बाद इस आयोजन से राज्य के शासन-प्रशासन की प्रतिष्ठा बढऩा तय है। अब बिहार के आम-ओ-खास लोगों की जिम्मेदारी है कि नशामुक्ति के संकल्प को साकार करने में पूरे मन से मुख्यमंत्री का साथ दें। दरअसल, नीतीश कुमार की इस उपलब्धि का एक गहरा राजनीतिक संदेश भी है। शराबबंदी उनका चुनावी वादा था। विधानसभा चुनाव से पहले जीविका कार्यकर्ताओं के सम्मेलन में एक महिला द्वारा यह मांग किए जाने पर उन्होंने वादा किया था कि यदि वह दोबारा सत्ता में लौटते हैं तो राज्य में शराबबंदी लागू कर देंगे। मुख्यमंत्री सत्ता में लौटे तो उनकी पहली घोषणा यही थी कि 1 अप्रैल, 2016 से प्रदेश में शराबबंदी लागू कर दी जाएगी। हर व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि यदि मुख्यमंत्री अपने चुनावी वादे पूरे कर रहे हैं तो उनका साथ दें ताकि उनका मनोबल बढ़े। वैसे भी नशामुक्ति नैतिकता से जुड़ा विषय है, इसलिए भी इस पर पूरे राज्य की एकजुटता दिखनी चाहिए। मानव श्रृंखला में स्कूली बच्चों की भागीदारी हौसला बढ़ाने वाला संकेत है। बच्चे ही भविष्य हैं। यदि उन्हें नशामुक्ति की महत्ता समझाई जा सके तो बिहार आज नहीं तो कल जरूर नशामुक्त होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]