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कोर्ट के चाबुक चलने पर ही सरकारी विभाग कुभंकरणी नींद से जागता है, जबकि विभाग अच्छी तरह जानता है कि कौन-कौन से इलाकों में भू-माफिया का कब्जा है
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जम्मू विकास प्राधिकरण (जेडीए) द्वारा हाई कोर्ट के निर्देश का अनुपालन करते हुए शहर के साथ लगते सिद्धड़ा इलाके में अतिक्रमणकारियों से पचास कनाल भूमि को छुड़ा लिया जाना एक सराहनीय कदम है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या कोर्ट के निर्देशों पर ही सरकारी तंत्र काम करेगा। विडंबना है कि जब कोर्ट का चाबुक चलता है तभी सरकारी विभाग कुभंकरणी नींद से जागता है। हालांकि, विभाग अच्छी तरह जानता है कि कौन-कौन से इलाकों में भू-माफिया का कब्जा है। जब अतिक्रमण होती है तब जेडीए खामोश है। हर फैसला न्यायपालिका ले, यह कार्यपालिका के लिए उचित नहीं। जेडीए ने अभी पचास कनाल भूमि पर से अतिक्रमण हटाया है। अभी भी भू-माफिया के कब्जे में करीब बारह हजार कनाल भूमि हैं, जिसे छुड़ाना प्राधिकरण के लिए चुनौती साबित हो रहा है। राज्यभर में करीब डेढ़ लाख कनाल वन भूमि पर अवैध कब्जे हैं। फरवरी में प्राधिकरण ने जब भू-माफिया से कब्जा छुड़ाने की कोशिश की थी तो अतिक्रमणकारियों ने पथराव शुरू कर दिया था, जिसमें डायरेक्टर लैंड मैनेजमेंट और खिलाफवर्जी अधिकारी सहित चार लोग घायल हो गए थे। लोगों ने कब्जाई भूमि पर पक्के मकान तक बना लिए हैं। इलाके की भौगोलिक परिस्थिति ऐसी है कि जब जेडीए के अधिकारी पुलिस के साथ इलाके को खाली करवाने जाते हैं तो उन्हें चारों ओर से घेरकर पथराव शुरू कर दिया जाता है, जिससे अभियान सफल नहीं हो पा रहा है। इस भूमि को छुड़वाने के लिए पूरे दलबल के साथ कार्रवाई करनी चाहिए। अगर जेडीए जमीन को खाली नहीं करवा पाया तो अतिक्रमणकारियों के हौसले और बढ़ेंगे। इसमें कोई दो राय नहीं कि भू-माफिया वनों की प्रतिबंधित जमीनों पर भी नजरें गड़ाए हैं। शुरुआत में अस्थायी तौर पर ढांचे बनाए जाते हैं, फिर उन्हें पक्का कर उन्हें बेच दिया जाता है। इनमें वे लोग फंस जाते हैं जिन्होंने सस्ता समझ कर जमीन खरीदी होती है। अतिक्रमणकारी भी उन्हें झूठा आश्वासन देते हैं कि सरकार इलाके में बिजली, पानी आपूर्ति करने के साथ ही जल्द ही सड़क बनाएगी। शहर की प्राइम लोकेशन होने के कारण भी लोग धोखे में आ जाते हैं। वे अपनी खून पसीने की गाढ़ी कमाई लुटा बैठते हैं। लोगों भी चाहिए कि कोई जमीन खरीदने से पहले इस बात की जांच कर लें कि जो जमीन वे खरीद रहे हैं क्या वह कब्जाई भूमि तो नहीं।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]