प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस सोच की जितनी तारीफ की जाए, कम है कि आगामी पहली मई से देश में सेना, पुलिस और एम्बुलेंस के अलावा किसी अन्य वाहन पर लालबत्ती लगाने की अनुमति नहीं होगी। वैसे बिहार गर्व कर सकता है कि उसके बड़े राजनेता बहुत पहले लालबत्ती का मोह त्याग चुके थे। मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कभी लालबत्ती का प्रयोग नहीं किया। उनसे पहले लालू प्रसाद और राबड़ी देवी ने भी अपने सरकारी वाहनों पर लालबत्ती नहीं लगने दी। बहुत पहले कर्पूरी ठाकुर जैसे जननेता लालबत्ती जैसे प्रतीकों के बारे में सोचते भी नहीं थे। जहां तक राज्य की मौजूदा सरकार या ब्यूरोक्रेसी का सवाल है, तमाम मंत्री और अधिकारी लालबत्ती का इस्तेमाल कर रहे हैं। पहली मई से वह लालबत्ती हटाने को बाध्य होंगे यद्यपि अच्छा उदाहरण होगा, यदि राज्य के सभी मंत्री, अधिकारी व अन्य लाल बत्तीधारी इससे पहले ही इसका मोह त्याग दें। लालबत्ती वास्तव में आकस्मिकता या आपातस्थिति का संकेत होती है लेकिन नेताओं और अधिकारियों ने इसे स्टेटस सिंबल बना लिया। खासकर उत्तर भारत के राज्यों में तमाम छुटभैये नेता और कनिष्ठ अधिकारी कतई अनधिकृत ढंग से अपने वाहनों पर लालबत्ती का इस्तेमाल करते हैं। लालबत्ती लगे वाहनों से आपराधिक वारदातों को अंजाम देने के भी प्रकरण सामने आते रहते हैं। इस पृष्ठभूमि में लालबत्ती का इस्तेमाल वर्जित किया जाना सराहनीय फैसला है। इस फैसले के पीछे केंद्र सरकार ने तर्क दिया है कि देश का हर व्यक्ति वीआइपी है। यह हृदय को स्पर्श करने वाली बात है। व्यावहारिक धरातल पर ऐसी समानता की स्थिति हासिल करने में अभी समय लगेगा यद्यपि यह उम्मीद जगाने वाली बात है कि राजनीतिक नेतृत्व कम से कम सिद्धांत में ऐसा मानता है। सदियों से छुआछूत, सामाजिक उत्पीडऩ, गरीबी, अशिक्षा और शोषण के शिकार सामाजिक वर्गों के दिल-दिमाग पर ऐसा मरहम लगाकर ही देश को अखंडित रखा जा सकता है। केंद्र सरकार समाज के वंचित वर्गों को ताकत और आत्मविश्वास देने के लिए कई कदम उठा चुकी है, जबकि बिहार में भी वंचित वर्गों के लिए काफी काम हो रहा है। हर स्तर पर इन प्रयासों को गति देने की जरूरत है ताकि देश में यथाशीघ्र सामाजिक समरसता हासिल की जा सके। लालबत्ती विषमता का प्रतीक है। इसे प्रतिबंधित करके केंद्र सरकार ने इस दिशा में अहम कदम उठाया है। लालबत्ती की बाधा हटने से आम आदमी और उसके प्रतिनिधियों के बीच दूरी घटेगी। लोकतंत्र की मजबूती के लिए भी यह जरूरी है।
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नेताओं और अधिकारियों के वाहनों पर लगी लालबत्तियां शासक-प्रजा का भाव प्रबल करती हैं जबकि लोकतंत्र की मंशा इसके ठीक विपरीत होती है। जाहिर है कि लालबत्तियां लोकतंत्र को आहत करती हैं। इन पर प्रतिबंध से लोकतंत्र मजबूत होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]