पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का यह सवाल वाजिब ही है क्या हरियाणा का खेल विभाग जाति व वर्ग देखकर पुरस्कार देता है? हालांकि यह सवाल ओलंपिक, राष्ट्रीय या प्रांतीय स्तर पर बेहतर प्रदर्शन वाले खिलाड़ियों से नहीं जुड़ा है, क्योंकि उन्हें जो नौकरियां और पुरस्कार दिए गए हैं, उनमें पारदर्शिता नजर आती है। यह सवाल भले ही उच्च न्यायालय ने आज उठाया हो, लेकिन हरियाणा के लोग तब से ही उठा रहे हैं, जब से पर्वतारोही ममता सौदा को सरकार ने पुलिस उपाधीक्षक बनाया था और उन्हें 21 लाख रुपये का पुरस्कार भी दिया। इसके बाद प्रदेश के कई लोगों ने एवरेस्ट पर चढ़ाई कर विजय हासिल की और सरकारी नौकरी के लिए उच्च न्यायालय चले गए। उन्होंने भी खुद को नौकरी दिलाए जाने की मांग की। न्यायालय को उनकी बात वाजिब लगी। सो सरकार को न्यायालय के आदेश पर याचियों को नौकरी देनी पड़ी। एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाले वे लोग जिन्हें नौकरी मिल गई, उनमें से दो ने नौकरी मिलने के बाद न्यायालय से याचना की कि सरकार ने ममता को तो नकद पुरस्कार दिया, लेकिन उन्हें नहीं। इस पर न्यायालय ने सरकार से पूछा है कि वह शपथपत्र देकर बताए कि कैसे जाति विशेष के खिलाड़ी को इतनी बड़ी राशि जारी कर दी गई और अन्य को नजरअंदाज कर दिया गया। जाहिर है इस सवाल का जवाब प्रदेश सरकार और उसके अधिकारियों के पास नहीं है। न्यायालय में याचियों ने यह भी कहा है कि ममता को तो डीएसपी बनाया गया, लेकिन उन्हें कमतर पद पर नियुक्ति की गई। उधर प्रदेश के लोग भी सवाल उठा रहे हैं कि सप्ताह भर पहले ही हिसार की अनीता कुंडू ने एवरेस्ट पर चीन की तरफ से चढ़ाई कर विजय हासिल की है। इस तरह वह नेपाल और चीन दोनों तरफ से एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं। अनीता को सरकार ने एवरेस्ट विजय करने पर सब इंस्पेक्टर बनाया था। दोनों तरफ से एवरेस्ट पर चढ़ने के बाद तो उनकी उपलब्धि और बड़ी हो गई है, तो सरकार ने उन्हें अब तक पदोन्नति देने और नकद पुरस्कार देने की घोषणा क्यों नहीं की? जाहिर है कि सरकार यदि बिना किसी नीति और नियम के पुरस्कार और नौकरी देगी व पारदर्शिता नहीं बरतेगी तो ये सवाल उठेंगे ही।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]