शहरी सुधार में झारखंड को देश में तीसरा स्थान मिला है और यह झारखंड के लोगों को एक बार फिर गर्व करने का अवसर दे रहा है लेकिन कहीं न कहीं संशय भी है। शहरी क्षेत्रों के लोगों के लिए यह ‘उपलब्धि’ समझ से परे हैं। तमाम निकायों में परिवर्तन की रफ्तार या तो धीमी है या फिर एकदम शून्य पर। ऐसे में यह बात सहज विश्वसनीय नहीं लगती है। लेकिन, आंकड़े भी झुठलाए नहीं जा सकते। सो, सरकार को व्यवस्था में कुछ ऐसा परिवर्तन करना होगा जिससे लोगों को इन आंकड़ों के आधार पर मिली उपलब्धि पर विश्वास हो।

विश्वास करना आसान नहीं है। शहरी क्षेत्रों में नागरिक सुविधाओं में बेहतरी के प्रयास तो हुए हैं लेकिन यह देश में तीसरे पायदान पर पहुंचने लायक है, ऐसा लगता नहीं। नालियों की स्थिति तो छोड़ ही दीजिए, घरों से कचरा भी रोज नहीं उठ रहा। सड़कों का हाल भी वैसा ही है। मुख्य मार्गो को छोड़कर गलियों में उतरते ही समस्याएं। बिजली को लेकर भी कोई बड़ा दावा नहीं कर सकते। इन सबके बीच यह उपलब्धि मिली है तो कहीं न कहीं सच्चाई भी है। अटल नवीकरण एवं शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत) के शहरी सुधार कार्यक्रम में झारखंड को देश में तीसरा स्थान हासिल हुआ है।

शुक्रवार को नई दिल्ली में आयोजित कार्यशाला में केंद्रीय शहरी विकास, आवास तथा शहरी गरीबी उपशमन मंत्री वेंकैया नायडू ने इसकी घोषणा की और केंद्रीय मंत्री ने झारखंड की टीम को सम्मानित भी किया। बतौर प्रोत्साहन 14.6 करोड़ रुपये मिले हैं सो अलग। देश में झारखंड से बेहतर स्थिति में पहले पायदान पर आंध्र प्रदेश तो दूसरे पर ओडिशा है। अब सरकार के सामने चुनौती है कि उपलब्धि के अनुरूप दृश्य तैयार हो। शहरी सुधार के मानकों पर वित्तीय वर्ष 2016-17 में झारखंड को 93.5 फीसद अंक प्राप्त हुए हैं।

झारखंड ने इस मामले में पिछले साल भी बाजी मारी थी। इस एवज में उसे 7.28 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि मिली थी। ई-गवर्नेस सेवाएं, निकायों में लेखा प्रणाली को सुदृढ़ करने, जनोपयोगी नीतियों के सृजन, निकायों के राजस्व संग्रहण में वृद्धि आदि कई मुद्दों में झारखंड ने बेहतर किया है। व्यवस्था सुधारने के लिए 313.36 करोड़ रुपये खर्च होने जा रहे हैं। इसका भी फायदा मिलेगा। सरकारी अधिकारियों को आंकड़ों की बाजीगरी से निकलकर उपलब्धियों को धरातल पर उतारने की कोशिशें ईमानदारी से करें तो सुधार तय है।

[झारखंड संपादकीय]