-----भारतीय सामाजिक संस्थाएं अत्यंत प्राचीन हैं। उनके आधार तत्व में किसी भी प्रकार का मूलभूत परिवर्तन नहीं आया है, उनकी अक्षुण्णता पूर्ववत बनी हुई है। -----केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने रामायण सर्किट विकसित करने का फैसला किया है। रामनगरी अयोध्या से लेकर रामेश्वरम तक उन सभी चुनिंदा तीर्थ स्थलों को संवारा जाएगा, जो किसी न किसी रूप में भगवान राम से जुड़े रहे हैं। कभी उनके इससे न केवल करोड़ों रामभक्तों की यात्रा सहज होगी बल्कि कई राज्यों में पर्यटन के नए अवसर भी सृजित होंगे। इस सर्किट के दायरे में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु के वे सभी स्थल होंगे, जिनका किसी न किसी तरह राम से संबंध रहा। हालांकि कुछ लोग इस योजना को अगर महज राजनीतिक नजरिए से देख रहे हैं तो इसमें कोई हैरानी की बात भी नहीं है। यह समझने की बात है कि देश केवल बड़े-बड़े उद्योगों और ऊंची-ऊंची अट्टालिकाओं का नाम नहीं है। देश का अपना एक सामाजिक ताना-बाना होता है। उसकी संस्कृति होती है। उसकी आस्था और समाज को सवरंगीण विकास के साथ आगे बढ़ाने की सोच भी होती है। आजादी के बाद देश निर्माण की चिंता तो हुई लेकिन, उस चिंता में संस्कृति का स्थान नहीं था जबकि संस्कृति किसी भी समाज की लाइफलाइन होती है। देश निर्माण तो ठीक ढंग से हो नहीं पाया, समाज का व्यवस्थित विकास भी ढर्रे से उतर गया। ऐसे में विस्मृत संस्कृति को पुनर्जीवित और पुनस्र्थापित करने की बात यदि सोची जा रही है तो निश्चय ही यह सराहनीय पहल है। भारतीय सामाजिक संस्थाओं में सदाशयता, सद्भावना और सहिष्णुता निरंतर बरकरार रही है। यही संस्थाएं जब अपनी संस्कृति की पहचान मांग रही हैं तो अनेक लोग उसे असहिष्णु बताने से नहीं चूक रहे हैं। उन्हें यह समझना होगा कि भारतीय सामाजिक संस्थाएं अत्यंत प्राचीन हैं। उनके आधार तत्व में किसी भी प्रकार का मूलभूत परिवर्तन नहीं आया है, उनकी अक्षुण्णता पूर्ववत बनी हुई है। भारतीय समाज को लंबे समय तक चुनौती, विरोध, प्रतिरोध, मतभेद का सामना करना पड़ा है। रामायण सर्किट सही दिशा में उठाया गया कदम है जो पुराकालीन संस्कृति की नींव समकालीन समाज में मजबूत करेगा। पर्यटन के लिए भी यह सर्किट अहम होगा क्योंकि लोग तो नियोजित सुविधाएं व जानकारियां चाहते ही हैं।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]