चीन और नेपाल सीमा से सटे उत्तराखंड में चार धाम तक रेल नेटवर्क का विकास पयर्टन के लिहाज से महत्वपूर्ण है ही, सामरिक दृष्टि से भी अहम है।
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चार धाम को रेल सर्किट से जोडऩे की महत्वाकांक्षी योजना को लेकर अब कवायद तेज कर दी गई है। लंबे समय से इसकी जरूरत महसूस की जा रही थी। इसकी कई वजह हैं। चीन और नेपाल सीमा से सटे होने के कारण उत्तराखंड राज्य सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह तथ्य सर्वविदित है कि तिब्बत तक बिछी ब्रॉड गेज लाइन पर चीन की ट्रेन सरपट दौड़ रही है। दूसरी ओर इस सीमावर्ती क्षेत्र में भारत का सड़क नेटवर्क भी खस्ताहाल है। चीन और भारत के संबंधों में लगातार उतार-चढ़ाव के लिए चलते यह जरूरी है कि सीमाओं तक यातायात सुगम और सुचारु हो। ध्यान देने योग्य तथ्य यह भी है कि चमोली के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में चीनी सेना के अतिक्रमण की खबरें आती रहती हैं। दूसरा अहम पहलू है सुरक्षित यातायात। हर साल लाखों लोग चार धाम यात्रा पर उत्तराखंड आते हैं। आमतौर पर जून तक सड़कों की स्थिति ठीक रहती है, लेकिन बरसात शुरू होते ही हालात बेकाबू होने लगते हैं। बदरीनाथ, केदारनाथ और गंगोत्री-यमुनोत्री को जोडऩे वाले राष्ट्रीय राजमार्गों पर जगह-जगह उभर आए भूस्खलन क्षेत्र यात्रियों की परीक्षा लेते रहते हैं। इसकी वजह न केवल यात्रियों को घंटों सड़क खुलने का इंतजार करना पड़ता है, बल्कि जान का जोखिम भी बना रहता है। तीसरा बड़ा कारण है सैलानियों की सहूलियत। पर्यटन प्रदेश कहलाने वाले उत्तराखंड में रेल नेटवर्क विकसित होने से निश्चित ही यहां आने वाले सैलानियों की संख्या में इजाफा होगा। इससे न सिर्फ पहाड़ की सबसे बड़ी पीड़ा पलायन के दंश को कम किया जा सकेगा, स्थानीय लोगों के लिए सुगम यातायात के साथ रोजगार के साधन भी सृजित होंगे। वर्तमान में उत्तराखंड का रेल नेटवर्क महज मैदानों तक ही सिमटा हुआ है। इसमें देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार, कोटद्वार, काशीपुर और काठगोदाम ही प्रमुख स्टेशन हैं। नए स्टेशन विकसित होने से स्थानीय लोगों को अपने क्षेत्र में सुविधा मिलने लगेगी। दरअसल, उत्तराखंड के पहाड़ों को रेल नेटवर्क से जोडऩे की योजना ब्रिटिश शासन काल से है, लेकिन आजाद भारत में भी इसे परवान चढऩे में 70 साल का समय लग गया। नब्बे के दशक में जब सतपाल महाराज केंद्र में रेल राज्य मंत्री थे तो इस परियोजना पर एक बार फिर काम शुरू किया गया। अब जिस गति से सर्वेक्षण कार्य को आगे बढ़ाया जा रहा है, उससे उम्मीद की जानी चाहिए कि उत्तराखंड को डबल इंजन की सरकार का लाभ मिलेगा।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]