यह कोई नई बात नहीं कि राहुल गांधी ने मोदी सरकार के प्रति आक्रामक रवैया अपना लिया है, लेकिन यह बात नई अवश्य है कि जैसे-जैसे उनकी आक्रामकता बढ़ रही है वैसे-वैसे बचकाने बयान देने का सिलसिला भी बढ़ रहा है। अभी तक सूट-बूट के पीछे पड़े राहुल गांधी पिछले दिनों कांग्रेस के छात्र संगठन के एक कार्यक्रम में यहां तक कह गए कि अर्थव्यवस्था की हालत खराब होते देखकर उनके प्रधानमंत्री यानी मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की क्लास लेनी पड़ी।

उन्होंने यह बचकानी टिप्पणी मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी की मुलाकात के संदर्भ में की, जबकि किसी को पता नहीं कि इस मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं के बीच वस्तुत: क्या बात हुई? इस मुलाकात का विवरण न तो प्रधानमंत्री की ओर से सार्वजनिक किया गया और न ही पूर्व प्रधानमंत्री की ओर से। इसके बावजूद राहुल ने प्रधानमंत्री की खिल्ली उड़ाने के लिए जो मन में आया, कह दिया। मौजूदा प्रधानमंत्री और पूर्व प्रधानमंत्री के बीच मुलाकात में कुछ भी असामान्य नहीं। विरोधी दलों के नेता मेल-मिलाप करते ही रहते हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी तमाम मतभेदों के बावजूद पर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात करते रहे। अच्छा होता कि राहुल इस मुलाकात को लेकर हास्यास्पद टिप्पणी न करते। सरकार के प्रति आक्रामक दिखने का यह मतलब नहीं हो सकता कि वह जो मन में आए वह बोल दें।

उन्हें इस पर गौर करना चाहिए कि उनकी बेतुकी टिप्पणियों से वह उपहास का ही पात्र अधिक बन रहे हैं। यदि वे इसी तरह के बेतुके बयान देते रहे तो वह भाजपा से अधिक कांग्रेस के लिए चिंता का विषय बन सकते हैं। 1अब तो राहुल परोक्ष रूप से ही सही, सोशल मीडिया पर भी आ गए हैं। वह और उनके साथी इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकते कि उनके बचकाने बयानों पर किस तरह चुटकुले गढ़े जाते हैं? उन्हें किसी पाठशाला में यह सीखने की सख्त जरूरत है कि एक जिम्मेदार नेता से गंभीर बयानों की भी अपेक्षा की जाती है। अमेठी फूड पार्क से लेकर मछुआरों के हक छीनने तक के उनके बयानों से तो यही धारणा बन रही है कि वह बोलने के पहले तथ्यों को ताक पर रख देते हैं। मोदी और मनमोहन सिंह की मुलाकात पर हास्यास्पद टिप्पणी करने वाले राहुल को इससे अवगत होना जरूरी है कि विकास दर संबंधी ताजा आंकड़े यही बता रहे हैं कि उनकी ओर से यह जो माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है कि मोदी सरकार ने एक वर्ष में कुछ भी नहीं किया और देश गड्ढे में जा रहा है उसमें सच्चाई नहीं। अच्छा हो कि वह यह समङों कि सरकार को घेरने का यह मतलब नहीं कि वह दुष्प्रचार में जुट जाएं।

पिछले वित्त वर्ष यानी मोदी सरकार के कार्यकाल के पहले साल में सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर 7.3 प्रतिशत रही। इससे पता चलता है कि इस सरकार ने अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए जो तमाम कदम उठाए वे सफल रहे हैं। महत्वपूर्ण यह है कि इस वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में विकास दर 7.5 प्रतिशत पाई गई। इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था में उठान का सिलसिला चल निकला है। उम्मीद है कि राहुल की ओर से ऐसा कोई बयान नहीं आएगा कि मोदी की ओर से मनमोहन सिंह से अर्थव्यवस्था का ज्ञान लेने के चंद घंटे के अंदर ही आर्थिक मोर्चे पर तेजी आ गई।

(मुख्य संपादकीय)