मानसून में जलभराव की समस्या से निजात दिलाने के लिए दिल्ली सरकार ने हेल्पलाइन नंबर जारी किया है। वक्त रहते इस तरह की पहल सराहनीय है। सरकार की ओर से यह दावा किया गया है कि इस हेल्पलाइन नंबर पर आने वाली शिकायतों को तत्काल दूर किया जाएगा। दूसरी तरफ खुले में कूड़ा जलाने की शिकायतों के लिए भी एक वाट्सएप हेल्पलाइन नंबर जारी किया गया है। राजधानी की आबोहवा में सुधार के लिए यह प्रयास भी निस्संदेह प्रशंसनीय है, लेकिन यह भी सच्चाई है कि हेल्पलाइन नंबर उपलब्ध करा देने मात्र से कुछ लाभ नहीं होने वाला। व्यवस्था कोई भी बनाई जाए, जब तक उस पर सुचारु ढंग से काम नहीं होगा, वह लोगों के लिए उपयोगी साबित नहीं होगी। समस्या चाहे जलभराव की हो अथवा प्रदूषण फैलाने की, उसकी जड़ में लापरवाही ही होती है। या तो सरकारी विभागों में तालमेल नहीं होता या फिर कर्मचारी गंभीरता से अपनी जिम्मेदारी का निवर्हन नहीं करते।
जलभराव का प्रमुख कारण समय पर नालों की सफाई न होना एवं टूटी सड़कों की मरम्मत नहीं होना है। यदि अधिकारी और कर्मचारी गंभीर हों तो जलभराव की नौबत ही न आए। इसी तरह खुले में कूड़ा खुद सफाईकर्मी ही जलाते दिखाई देते हैं। चूंकि खुद गलती कर रहे हैं, इसलिए किसी और को रोक पाने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाते। इन परिस्थितियों में केवल हेल्पलाइन नंबर शुरू कर देने भर से कुछ नहीं होने वाला। मुख्य बात है लापरवाही के लिए जिम्मेदारी तय की जाए और दोषी पाए जाने पर सख्त कार्रवाई की जाए। व्यवस्था को प्रभावी बनाने के लिए नियमित रूप से अधिकारियों से हेल्पलाइन पर आई शिकायतों और उन पर हुई कार्रवाइयों की रिपोर्ट मांगी जानी चाहिए। उच्चाधिकारियों को समय-समय पर कुछ शिकायतकर्ताओं से स्वयं बात करके जांच भी करनी चाहिए कि वास्तव में हेल्पलाइन लोगों की समस्याएं सुलझा पा रही है या नहीं। अगर ऐसा किया जाता है तो लापरवाह अधिकारियों और कर्मचारियों पर दबाव भी बनेगा और सकारात्मक परिणाम भी सामने आएंगे। दिल्ली सरकार को चाहिए कि सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों की इस प्रवृत्ति को बदले और सुधार की दिशा में प्रयास करे। जनता को लगना चाहिए कि उसकी समस्याएं सुनी भी जा रही हैं और सुलझाई भी जा रही हैं।

[  स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]